Posts

Showing posts from October, 2017

मै क्या खाऊ ?

मै  क्या खाऊ ? गरीब जब ये बोलता है कि में क्या खाऊ तो उसका मतलब यह है कि उसके पास दो बक्त का खाने का भी कोई जुगाड़ नही होता है उसे ये नही पता कि कल क्या खायेगा! तब वह बोलता है कि मै क्या खाऊ ? अभी एक घटना भी इस शब्द का शिकार हुई है जब हमारे देश का प्रशासन  एक बच्ची का आधार कार्ड ना होंने पर । एक गरीब को राशन  नही दिया जाता ! खाना ना मिलने कि वजह से 8 दिन बाद संतोषी भात भात कहती  हुई आखरि  सास लेती हुई मर जाती है | क्या संतोषी के घर वालो के पास बम था, या वो आंतकबादी थे , जो एक मामूली राशन की दुकान पर आते !  कोई नियम या कोई कानून किसी की जिंदगी से बढ़कर नही हो सकता है  दूसरी तरफ 450 करोड़ रु का अनाज से सड़ने से 68.5% आबादी कुपोषण की शिकार है प्रतिवर्ष पांच साल से कम आयु के दस लाख बच्चे कुपोषण के कारण मर जाते है ! संतोषी पहली लड़की नही है जो भुखमरी का शिकार हुई है ना जाने कितनी बच्चे इस भूख की तड़प में मर गए !  उस का जिम्मेदार हमारा प्रशासन है जो  आजादी के 70 साल होने पर भी बिफल रहा । हमारा देश 119 देशो में 100 नंबर हो गया , ग्बोबल हगर इंटेक्स में भारत का 97 से 100 वे स्थान पर आ जाना बहुत श

मजा में सजा

Image
मजा में सजा आज ये शब्द बिल्कुल सही है क्योंकि लोग अपने मजे के लिए लगातार पर्यावरण को हानि पहुँचा रहा हैं उससे अपने जुड़े हित -अहित भूल गए ! दीपावली ही उसका ज्वलित उदाहरण , है सुप्रीम कोट ने दिल्ली में पटाखों पर बेन लगाने का कोई असर नही दिखा, हर बार कि तरह ही पटाखों को धड़ल्ले से बेचा गया ! अंतर सिर्फ इतना है कि ये काम चोरी छिपे हुए हैं ये घटना आज के समाज को परिभाषित करती हैं  इस समाज को शिक्षा कि आवश्यकता  , ताकि इनकी मानसिकता को बदला जा सके !  तभी कोई निर्णय कारगर साबित होगा , तब  लोग पर्यावरण के सरक्षण को अपनी जिंदगी का आधार मान कर चलीगे !   लेकिन बढ़ते हुए प्रदूषण को रोकने के लिए जो बड़े - बड़े वायदे किये गए |  दीवाली पर उनकी भी पोल खुल गयी , एक तरफ दिल्ली के लोगो के हित में पटाखों पर बेन लगाया जाता है दूसरी तरफ दिल्ली में सफाई कर्मचारियो के हड़ताल पर जाने के कारण चारों तरफ कूड़ा कूड़ा हो गया ! इस कारण कूड़े में बदबू हो  रही है  बदबू के निजात के लिए लोग कूड़ा जला रहे है  जिस से हवा प्रदूषित हो रही है !    लगा था कि  गाजीपुर के कूड़े कि घटना ने सरकार के आँख कान खोल दिए , जल्द ही कूड़े से राह

संस्थान बड़े , दशर्न छोटे

संस्थान बड़े  दर्शन छोटे संस्थान बड़े और दशर्न छोटे ,आज के दौर में यह  पंक्ति जायज हैं क्योंकि आधुनिकरण के समय में   सभी को  ज्यादा से ज्यादा   पैसा चाहिए । ताकि वह अपनी  जरूरतों को पूरी कर सके ! और इन सपनों को पूरा करने के लिए बचपन से लेकर युवा तक  बच्चों को   अच्छी से अच्छी शिक्षा देंने की पूरी कोशिश की जाती हैं यहाँ तक की नामी प्राइवेट संस्थानो में पढ़ाने के लिए व उज्वल भविष्य के लिए अपनी जमीन का टुकड़ा बेच देते हैं या कर्ज पर पैसे ले लेते हैं! अगर मध्यम वर्ग से छात्र  होते हैं तो लाखों का  लोन भी ले लिया जाता  हैं ताकि शिक्षा पूरी होंने पर आसानी से चूका दिया जायेगा ! पर ऐसा नही होता हैं  - पोस्ट ग्रेजुएट, बीएड बीटेक व उच्च शिक्षा प्राप्त करके भी छात्रो को मनमाफिक  नौकरी नहीं  मिल पाई है जहां  नौकरिया  मिली भी वहां सैलरी 12 - 15 हजार रूपए से अधिक नहीं होती है  ! अब उनके परिवार के लिए अकेले लोन ,कर्ज  चुकाना ओर भी  मुश्किल हो जाता हैं। ऐसा ही हाल - मीडिया के क्षेत्र ( पत्रकारिता संस्थाओं) का है जो छात्रों को मीडिया कि चमक - धमक दिखा कर  अपने  चैनल के निजी संस्थानो में पढ़ने को प्रोत्

जिंदगी लाइव

Image
जिंदगी लाइव  पुस्तक पर परिचर्चा       वक्ता   (लेखक ) प्रियदर्शन  ये पुस्तक 26 / 11 में मुंबई पर हुए हमले पर केंद्रीत  हो कर लिखी गयी हैं   क्योंकि अभी तक 26/ 11  हमले पर कई पुस्तके लिखी गयी , जिसे हमारे टीवी चैनलो ने भी खूब चलाया , पर  उस हमले में आम जनता कि समस्या को नजरअंदाज कर दिया , यहाँ तक क़ि!  उस दिन ही पूर्व प्रधान मंत्री  vp   सिंह की मृत्यु भी हुई थी ! फिर भी चैनेलो पर 26/ 11 का हमला लगातार  चल रहा था  उन्होनें पुस्तक के मुहत्वपूर्ण अंगो पर बात की ! इस में तारीख से लेकर किरदारों तक सभी वर्तमान के थे !  उस के साथ ही बताया की कभी आलोचक को मीठा नही होना चाहिए ! उसे सख्त भी होंना चाहिए , फिर उन्होनें स्त्री विमश पर बात की !  किस तरह आज मशीनी करण के युग में स्त्री सभी किरदारों को निभाती हैं जैसे उनके उपन्यास में शुल्भा का हैं जो एक टीवी चैनल में एंकर हैं जो की 26/ 11 की एंकरिग कर रही थी ! जब की उनका खुद का बच्चा खो गया था ,  इन किरदारों के माध्यम से उस समय की परिस्तिथियो को दिखाया गया हैं इसके साथ ही उन्होनें  सोशल मीडिया की बात कि - आज हमें यह मंच अनुभव करने नही देता , तभी हम

पत्रकारों का संघर्ष

Image
पत्रकारों का संघर्ष (  गौरी लंकेश ) गौरीलंकेश एक वरिष्ठ व महिला पत्रकार आज गौरीलंकेश के नाम के साथ महिला लगाना आवश्यक हो जाता हैं क्योंकि कल तक मीडिया में एक स्त्री का आना इतना ही असम्भव था !जितना कि चाँद पर जाना  , पर समय के साथ वीर माता- पिता अपनी बेटियों  को इस सफर में भेजने को तैयार हो गए , सिर्फ इस आस  में की  देश की न्यायालय हैं जो पत्रकारों की रक्षा करेगी न्याय देगी , आखिर ये भी समाज सेवा हैं जो समाज को सही गलत का आईना दिखाती हैं इसलिए  सरकार का परम दायित्व  बनता हैं कि उनकी रक्षा करें ! पर आज आज मीडिया में महिला पत्रकारों  कि संख्या  ,पुरुष  पत्रकारों से  भले ही कम हैं पर आज पत्रकारिता में जिस तरह से पत्रकारों कि हत्याये हो रही हैं वो बहुत ही चिन्ताजनक हैं हालांकि, स्वंतत्रता से पहले और बाद में भी समय - समय पर  शक्तिशाली ताकतों ने सत्य को दबाने कि कोशिश कि हैं पर जब अब पत्रकारों के साथ  जनतंत्र की ताकत हैं और देश सेवा कि भावना से सभी दायत्वों का पालन कर रहें हैं तो लगातार सच्चे पत्रकारों  की हत्यायें कराई जा रही हैं वो पवित्र आत्माए हैं  रामचन्द्र  छत्रपति 2002, डॉ नरेंद्