लड़की होना गलत है क्या ?
हर रीति रिवाज , या रस्म , हर कहीं लड़की होने पर सोचना पड़ जाता है। बीमार होने के कारण अंतिम समय में दादी को न देखने का गम बहुत था। मैंने सोचा कि तेरवी वाले दिन हवन में बैठकर दादी की आत्मा की शांति के लिए पार्थना करुगी। बीमार होने पर भी दिल्ली से यूपी आना मेरे लिए आसान नहीं था । हवन वाले दिन सबसे पहले नहा कर हवन की तैयारी करना। जब हवन शुरू हुआ तो मुझे ये बोल कर हवन में बैठने से मना कर दिया । कि तुम देवी हो अभी तुम नहीं बैठ सकती। जब मैंने इसका विरोध किया और बोला कि सब तो बैठे हैं हवन में , तो मैं क्यों नहीं ? मुझे जबाब मिला ,कि तुम पोती हो इसलिय । चिंता मत करो बेटी । शादी के बाद तुम बैठ सकती हो । तुम देवी हो अभी । मैने फिर कहा मेरे भाई भी पोते हैं तो वो क्यों बैठे हैं। ? अरे बेटी वो लड़के हैं कुल दिपक हैं। खानदान के। जब बड़ी हो जाओगी समझ जाओगी। फिर मुझे सब चुप्प कराने लगे । कितना बोलती है। पूर्वजो के समय से ऐसा ही होता आया हमारे यहां। उस समय मेरे अरमानों पर पानी फिर गया । अपने आप भी गुस्सा आ रहा था कि आखिर हमारे साथ ही क्यों ? अगर दिल्ली में होती तो जींद करके बैठ जाती।