आप आज भी जिंदा हो दादी मुझ में मेरी यादों में ।

स्मृति की दो राहों से........
उनकी यादे हमेशा उनके होने का एहसास कराती है।
दादी शब्द प्यार और  लाड़  का प्रतीक है। दादी नाम लेते ही मुझे उनकी कहानियाँ याद आ जाती हैं और वह हर एक कहानीे  से मिलने वाली सीख मुझे कभी बताना नहीं भूलती थीं । उनकी ज्यादातर कहानियां सच्चाई और सम्मान पर आधारित रहती थीं।
बोलती थी कि कम खाओ लेकिन इज़्ज़त का ।  दादा जी तो पहले ही चले गए , लेकिन दादी ने कभी उनकी कमी महसूस नहीं होने दी।
पापा कभी मुझे डांटते तो उन्हें अम्मा से शिकायत करने की धमकी देती। जब गांव से फोन आता तो पापा की शिकायत के अम्बार लगा देती।
फिर क्या था एक छोटे बच्चे की तरह बोलते मईयो ये मेरी बात नहीं मानती। अम्मा बोलती मेरी बच्ची को हाथ मत लगाइयो नहीं तो मेरा मरा मुँह देखेगा।
पापा एक अच्छे बच्चे की तरह कुछ न बोलते। बचपन से लड़कों  के कपड़े पहने थे। जब समय के साथ बड़ी हुई तो मुझे एक सीधी - साधी लड़की बनने के लिए सूट पहने को बोला गया,लेकिन मैं हूँ तो अपनी दादी की तरह एकदम जिद्दी कहाँ मानने वाली थी।
मुझे बोला गया कि इस बार तू गांव सूट पहन कर जाएगी नहीं तो नहीं जाएगी।
पापा करीब दो घन्टे मुझे समझाते रहे कि गांव है वहां ये कपडे अच्छे नहीं लगते । मैं नहीं मानी वो बोले जा रहे थे । मां बोलेगी तो बोल दूंगा तूने मेरी बात नहीं मानी।
पापा दो सीढ़ी  उतरे ही थे कि बोले पहन जो पहन्ना है नहीं तो मां मुझे घर से निकाल देगी। कि तू क्यों आया  प्रिया नहीं है तेरे साथ ।
मेरी दादी मेरे अंगरक्षक का  काम करती थीं।  जब मुझे मोबाइल चाहिए था तो पापा का मानना था कि मोबाइल से बच्चे बिगड़ते  हैं। तब मेरी अम्मा ने मुझे मोबाइल के लिए पैसे दिए और बोली बेटा कोई गलत काम मत करना । विश्वास करके दे रही हूं।
आज चार साल हो गए मोबाइल को । उनका विश्वास और मोबाइल दोनो सही सलामत है। आज मेरे पास आज नहीं है तो सिर्फ दादी!
मेरी दादी दूसरों की दादी की तरह बिल्कुल न थीं। कभी यह नहीं बोला कि मैं मरने वाली हूं तो जल्दी शादी कर दे इनकी। मै जीते जी देख जाऊं ।
किसी भी तरह के  कपड़े पहन्ने की आज़ादी भी मुझे दादी की बजह से मिली थी । पापा से बोलती थी कि मेरी पोती किसी से कम नहीं है फ़ैशन है आज का । तू नहीं समझेगा ।
यहां गवार लोग रहते हैं तो क्या हुआ । लोगों को पता चलना चाहिए कि मेरी पोती  दिल्ली से आई है। पापा का डायलॉग पापा को ही बोल कर सुना कर बोलती । हाई  थिंकिंग सिम्पल लिविंग नहीं बेटा । हाई थिंकिंग , हाई  लिविंग ।पापा चुप।
जो अधिकतर दादियों  की तम्मना होती है। बेटी जल्दी अपने घर चली जाए , लेकिन मेरी दादी ने  कभी   ऐसा  नहीं बोला, बल्की हमेशा बोलती कि तू जब पढ़ लिख कर साहब बन जाएगी । इस बूढ़ी दादी को याद करेगी? 
उनकी एक धरोहर जो जीवन भर मेरे साथ रहेगी। वो है रोटी
आज जो गोल - गोल  रोटी बना लेती सब उनकी देन  उन्हीं ने मुझे रोटी बेलना सिखाया।
मेरी पसंदीदा कहानी थी उड़न खटोला जो जादुई होता है। प्रेमिका के  सच्चे प्यार  और बलिदान  पर आधारित थी । उसके प्रेमी के प्रति प्यार को देख कर भगवान ने  निर्जीव वस्तु में भी जान डाल कर  प्रेमिका को उसके प्यार से मिलाया था।
हमेशा बोलती थी कि सच्च से बढ़ कर कुछ नहीं होता। जो कहने के साथ ही अपनी निजी जिंदगी में उतारती थी। वहीं आदत मेरे अंदर भी डाल दी ।
उन के पास जाने का अवसर कम मिलता था। लेकिन जब दिल्ली से जाती तो एक लंबी लिस्ट होती कि इस बार ये कहानी सुननी है। गांव आने से पहले ही गर्मियों की छुटियों में मेरे लिए आम का अचार, गुजिया  बना कर रखती।
एक किस्सा याद है कि जब मेरी उम्र करीब 6 साल के आस- पास रही होगी उन दिनों घर में आम वाला आता था ।  एक दिन मुझे एक आम देकर अम्मा चली गयी। लेकिन मुझे बड़ा आम खाना था और मुझे छोटा आम मिला था। 
आम खाते - खाते दादी के पीछे चल दी । जहां दूसरे आम रखे थे । वहां जा कर देखा तो जगह बहुत ऊंची थी। फिर क्या था आम खाना था भले कैसे भी । इस आम को खाने का एक कारण भी था । यह दूसरे आम से बड़ा, पीला और रसीला था। मैंने इसकी  मांग कि तो मुझे छोटा आम पकड़ा दिया। कहते है जो हमें न मिले उसकी ललक ज्यादा होती है।
फिर क्या था। जहां आम की डलिया रखी थी उसके नीचे अनाज के कट्टे रखे थे , लेकिन कट्टों  पर चढ़ने के बाद भी डलिया हाथ नहीं आई तो  एक कट्टा  दूसरे के ऊपर रख लिया। जब थक जाती ,आम को देखकर थकान कम हो जाती।
कुछ देर बाद पापा आए उन को बोला ये काम कर दो । मुझे गुड़िया का इसे बिस्तर बनना है। ताकि मेरी गुडिया को कोई हाथ ना लगा सके। उन्होंने बिना सोचे म समझे मेरा काम कर दिया ।
फिर क्या था चढ़ गई ।लेकिन अभी भी आम मेरे हाथ नहीं आ रहे था। जिस डलिए में वह मोटा-पीला आम रखा था ।
बार - बार हाथ आम के बर्तन के पास पहुंचाने की कोशिश कर  रही थी। आखिरकार कोशिश कामयाब रही। आम तो मिला ही लेकिन आम के चक्कर में वह डलिया भी टूट गयी ।
फिर जल्दी से आम खाया । घर से बहार वाले नल पर अच्छे  से मुँह साफ किया। कपड़ो से आम के दाग साफ करने की कोशिश की।  फिर घर की तरफ चल दी। घर आने पर याद आया कि डलिया टूट गई थी।
किसी को पता न चल जाए । जल्दी से घर के बाहर रखी पीली मिट्टी को गीला कर के चुपकाने की कोशिश करने लगी। जिस मिट्टी से गांव मेँ चोका लगाया जाता है।
लेकिन जब पीली मिट्टी साफ उस डलिया पर दिखने लगी। तो एक औऱ समस्या हो गयी ।
अब याद आया चिकनी मिट्टी जिस से घर के चूल्हें को पोता जाता है। उस से डलिया चिपक सकती है। घर के अंदर जा ही रही थी कि दादी आ गई । बोली मेरा आम ?मेरे हाथ में डलिया देख कर समझ गई ।
जब से आज तक बिन मांगे आम मिलते रहे।
मेरे आने से पहले दुकानदरों से बोल देती मेरी पोती आएगी । तो जितने आम मांगे दे देना और बढ़िया आम लाना जो दिल्ली में भी न मिले और आज तक ये किस्सा गांव वालों को सुनाती थी।

सच है इंसान चला जाता है लेकिन यादे नहीं मरती। आप आज भी जिंदा हो मुझमे!

प्रिया गोस्वामी

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