खत्म होता बचपन
खत्म होता बचपन आजकल शहरीकरण कि चपेट में आये ,बच्चे, अकेलेपन का शिकार हो रहे हैं व्यस्त जिंदगी में माता पिता अपने बच्चों को ज्यादा समय नहीं दे पाते । उन्हें सही गलत अन्यथा नैतिकता का पाठ नहीं पड़ा पाते हैं उसी के चलते उनमें अहिंसात्मक भावना का भाव पनपता है इसके कई कारण सामने आए है जैसे कि परिवार के द्वारा बच्चों को समय न देना। सिर्फ मिलने पर उनकी पढ़ाई के बारे में पूछना तथा कम नंबर आने पर छत्तीस तरह के ट्यूशन लगा देना । सारा समय पढ़ाई को देने पर भी बच्चों को माता पिता का प्यार ना मिलना। ,पढ़ाई के प्रति क्रोध को जिंदा करता है उन्हें लगता है कि माता पिता उसे नहीं बल्कि उसकी पढ़ाई को प्यार करते हैं पढ़ाई के दबाब में नाबालिको की । कुछ ऐसी ही घटनाएं सामने आ रही हैं पहले प्रद्युमन केस में जिसमें एग्जाम की डेट कैंसिल कराने के लिए एक र्सीनियर छात्र जूनियर छात्र की हत्या कर देता है ऐसा ही दूसरा मामला जिसमेँ प्रधानाचार्य का प्रोजेक्ट की फाइल में हस्ताक्षर ना करने पर प्रधानाचार्य को जान से हाथ धोना पड़ा । ऐसी ही खबर मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल झाबुआ जिले की एक शासकीय आवासीय स्कूल से