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खत्म होता बचपन

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खत्म होता बचपन आजकल शहरीकरण  कि चपेट में आये ,बच्चे, अकेलेपन का शिकार हो रहे हैं व्यस्त जिंदगी में माता पिता अपने बच्चों  को ज्यादा समय नहीं दे पाते । उन्हें सही गलत अन्यथा नैतिकता का पाठ नहीं पड़ा पाते हैं उसी के चलते उनमें  अहिंसात्मक  भावना का भाव  पनपता है इसके कई कारण सामने आए है जैसे कि  परिवार के द्वारा बच्चों को समय न देना। सिर्फ मिलने पर उनकी पढ़ाई के बारे में पूछना तथा कम नंबर आने पर छत्तीस तरह के ट्यूशन  लगा देना ।  सारा समय पढ़ाई को देने पर भी बच्चों को माता पिता का प्यार ना मिलना। ,पढ़ाई के प्रति क्रोध को जिंदा करता है उन्हें लगता है कि माता पिता उसे नहीं बल्कि उसकी पढ़ाई को प्यार करते हैं पढ़ाई के दबाब  में नाबालिको की  । कुछ  ऐसी ही घटनाएं सामने आ रही हैं पहले प्रद्युमन केस में जिसमें एग्जाम की डेट कैंसिल कराने के लिए एक र्सीनियर छात्र जूनियर छात्र की हत्या कर देता है ऐसा ही दूसरा मामला  जिसमेँ  प्रधानाचार्य का प्रोजेक्ट की फाइल में हस्ताक्षर ना करने पर प्रधानाचार्य को जान से हाथ धोना पड़ा । ऐसी  ही खबर मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल झाबुआ जिले की  एक शासकीय आवासीय स्कूल से

प्रदूषण से बढ़ता खतरा

प्रदूषण एक अहम मुर्दा है जोे  आम व्यक्ति के  जीवन प्रभावित करता है ऐसा क्या हो गया कि हमारे देश में पर्यावरण तेजी से बदतर हो रहा है अब तो इसका अंदाजा  , एनवायरर्नमेंटल परफारर्मेंस इंडेक्स ( ईपीआई) की ताजा रिपोर्ट से हो जाता है  कि भारत इस मामले में दुनिया के चार सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले देशो में शामिल है 180 देशों की इस सूची में भारत 177 वें स्थान पर आया है और दो साल पहले भारत 141 वें नंबर पर थे , दो वर्षो में 36 अंक नीचे लुढ़कना  यह बताता है कि हमारी सरकार पर्यावरण को लेकर कितनी गम्भीर है इसके साथ -साथ पर्यावरण मंत्रालय के कार्य शैली पर सवाल उठना भी लाजमी है सबसे बदतर हाल दिल्ली का है जिस कारण दिल्ली में प्रदूषण के कारण, हर साल हाई- अलर्ट लगाना पड़ता है बच्चों का स्कूल बन्द कराने पड़ते है , हिन्दुओ के पवित्र त्यौहार ,दीपाली पर पटाखें ना जलाने के निर्णय लिया जाता है सवाल ये है ऐसे  कदम पयार्वरण को कहां  तक  बचाता है ? जहाँ दिल्ली का हर व्यक्ति हर रोज चार सिगरेट के बराबर प्रदूषण ले रहा है इस कारण दमा के मरीजो कि संख्या बढ़ रही है इस का शिकार छोटे बच्चे हो रहे है जो संसार में आते  ही कई