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Showing posts from November, 2018

रूढ़िवादी प्रथाओं की बलि चढ़ती नन्हीं बच्चियां

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राजस्थान का सफर राजस्थान की भूमि राजपूतों के नाम से जानी जाती हैं। इस भूमि पर वीर पैदा हुए। यहां की मिट्टी में अलग सा अपनापन है। चाहे यहां की भाषा हो या गाने सभी अपना बना लेते हैं। वेशभूषा के तो लोग दिवाने हैं। कहतें है कि जिस समाज में अच्छाई है तो कुछ बुराई भी जरूर होती हैं। यहां के रूढ़िवादी रीतिरिवाजों ने महिलाओं को सिर्फ भोग की वस्तु ही समझा हैं तो दूसरी तरफ उरमूल फाउडेशन, इन रूढ़िवादी रीतिरिवाजों जैसे- महिला शिक्षा, बाल विवाह, मृत्यु भोज विवाह आदि के खिलाफ काम कर रहा है। उरमूल ने अपनी शुरुआत 1981 से की समाज में कट्टर बन चुकी। इन प्रथाओं के खिलाफ उरमूल खड़ा हुआ। लोगों को जागरूक किया। बाल विवाह , मृत्यु विवाह से भविष्य में होनें वाले नुकसान  से लोगों को अवगत कराया तथा सविधान में इस प्रथा के खिलाफ बने कानून की जानकारी दी । लोगों को समझाया कि 18 साल से पहले शादी करना कानूनी जुर्म है। जो व्यक्ति इसके खिलाफ जाएगा। उसे जेल  जाने के साथ -साथ उचित जुर्माना लिया जा सकता है। उसी के साथ उरमूल ने महिला शिक्षा पर भी जोर दिया । घर से निकाल कर उन्हें स्कूल तक पहुंचाया, दूर स्कूल होनें के कारण

क्या गरीब बच्चों के लिए भी बाल दिवस का महत्व

क्या  बाल दिवस पर बच्चों तक पहुंच पा रहे है चाचा नेहरू के विचार बाल दिवस  बच्चों के लिए बहुत खास होता हैं।    बाल दिवस को अंग्रेजी में चिल्ड्रेन डे भी कहते है। आज के दिन स्कूलों में तरह-  तरह की एक्टिविटीज़ कराई जाती । परिवार वाले भी इस  दिन को बच्चों के लिए स्पेशल बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ते । उनके लिए गिफ्ट , चॉकलेट इत्यादि लाते हैं उनके दोस्तों को भी पार्टी में इनवाइट करते । वहीँ सोशल मीडिया में भी बाल दिवस की चारों तरफ से  शुभकामनाएं मिलने लगती है। टेलीविजन में भी आज का दिन विशेष बच्चों के नाम कर दिया जाता है आज के दिन उनके टेलंट को दुनिया के सामने दिखाया जाता है। जो पहले से ही अच्छे घरों से सम्बंध रखते हैं। जिन्हें हर तरह की सुख -सुविधा मिलती । लेकिन आज एक वर्ग तो बाल दिवस हंसी खुशी मना लेता है। वहीँ दूसरे वर्ग के गरीब बच्चों ने स्कूल तक नहीं देखा होता , उन के लिए आज का दिन भी रोज की तरह ही सड़क के किनारे  गुब्बारे, खिलौने  बेचने में व्यतीत हो जाता हैं। असल में बाल दिवस हमारे पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के जन्मदिन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। उन्हें बच्चों से बेहद

DTC बस का अनकहा सफर

DTC बस में एक  अनकहा  सफर इस धुंध भरी सुबह में कॉलेज के लिए निकली थी। हां आज थोड़ी लेट हो गई ।क्योंकि जब कॉलेज की छुटियाँ पड़ जाती है तो आदत खराब हो जाती है। जल्दी - जल्दी कोई भी बस मिल रही ,उस में ही बैठ गयी । जब आप के पास बस पास हो तो सोचना नहीं  पड़ता । आखिर में आनंद बिहार  की बस मिल ही गई। तो झट - पट बैठ गई। बस भरी हुई थी।अपनी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए ।  लेडीज सीट के पास खड़ी हो गई। एक आंटी ने मेरी तरफ देखा , पहली बार देखा तो जायज था ! कि जब आप के पास कोई आ कर खड़ा हो जाता है तो एक बार उसे आप देख ही लेते है। फिर दुबारा से वहीँ आंटी फिर  मुझे  देखने लगी ,जैसे कोई चोर छुपी हुई नजरों से देखता है। किसी को , उनकी उम्र लगभग 40 व  45 के बीच रही होगी । मैंने फिर अपने आप को देखा , कि मेरा कोई मेकअप तो ओवर नहीं है। फिर कपड़ो पर नजर गई । कपड़ो को भी देख लिया सब ठीक ही था । फिर सोचा शायद ये गांव से आई हो । लेकिन मैंने तो आज सूट ही पहना था। थोड़ी  देर बाद में उनकी सीट के सामने जा कर खड़ी हो गई। मैंने अपना बैंग सामने की तरफ टांग लिया  । उतने में आंटी बोली पीछे रख दो बैंग को मैंने बोला नहीं