DTC बस का अनकहा सफर
DTC बस में एक अनकहा सफर
इस धुंध भरी सुबह में कॉलेज के लिए निकली थी। हां आज थोड़ी लेट हो गई ।क्योंकि जब कॉलेज की छुटियाँ पड़ जाती है तो आदत खराब हो जाती है।
जल्दी - जल्दी कोई भी बस मिल रही ,उस में ही बैठ गयी । जब आप के पास बस पास हो तो सोचना नहीं पड़ता ।
आखिर में आनंद बिहार की बस मिल ही गई।
तो झट - पट बैठ गई। बस भरी हुई थी।अपनी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए । लेडीज सीट के पास खड़ी हो गई। एक आंटी ने मेरी तरफ देखा , पहली बार देखा तो जायज था ! कि जब आप के पास कोई आ कर खड़ा हो जाता है तो एक बार उसे आप देख ही लेते है।
फिर दुबारा से वहीँ आंटी फिर मुझे देखने लगी ,जैसे कोई चोर छुपी हुई नजरों से देखता है। किसी को , उनकी उम्र लगभग 40 व 45 के बीच रही होगी । मैंने फिर अपने आप को देखा , कि मेरा कोई मेकअप तो ओवर नहीं है।
फिर कपड़ो पर नजर गई । कपड़ो को भी देख लिया सब ठीक ही था । फिर सोचा शायद ये गांव से आई हो । लेकिन मैंने तो आज सूट ही पहना था।
थोड़ी देर बाद में उनकी सीट के सामने जा कर खड़ी हो गई। मैंने अपना बैंग सामने की तरफ टांग लिया ।
उतने में आंटी बोली पीछे रख दो बैंग को
मैंने बोला नहीं मुझे न्यूज़ पेपर पढ़ना हैं ।
मैने छोटी सी स्माइल दी ।
लेकिन उनके चेहरे का भाव नहीं बदला ।
वो कभी बहार देखती कभी मुझे देखती । मैं समझ न पा रही थी। कि क्यों ऐसा हो रहा है।
फिर मन ने सोचा कि कोई जान पहचाना की लड़की होगी । जो मेरी तरह दिखती होगी । तभी आंटी ऐसे बार - बार देख रही है।
फिर उनके पास वाली सीट खाली हो गईं।
मैं जा कर बैठ गई। थोड़ा न्यूज़ पेपर पढ़ा ही था कि सर दर्द हो गया । बैंग में न्यूज़ पेपर रखा । बैंग को पकड़ आँख बंद कर के सोने की कोशिश करने लगी। शायद दर्द से राहत मिल सके। वो आंटी फिर बार - बार देख रही थी। ऐसे में
नींद तो न आ सकती थी।
बैंग से मोबाइल निकाला सांग सुनने लगी।
फिर याद आया कि नदीम से नोट्स की पूछ लेती हूँ आज लेकर आया है या नहीं ।
कॉल की ,जैसे सब से बात करती हूँ मैंने भी बात उसी तरह से की , नदीम कॉलेज आओगें ?
वो आंटी मेरी तरफ देखने लगी। जैसे मैनें कोई गुनाह कर दिया हो ये शब्द बोल कर । वो मेरी बातें सुन रही थी। शायद उनके लिए अजीब था कि कोई लड़की किसी लड़के से बात करे वो भी नाम लेकर ।
क्योंकि हमारे समाज मेँ तो कोई लड़का बड़ा हो या छोटा सब को भाई ही बुलबाया जाता है। ताकि इनके बीच कोई रिश्ता न पनप सके। लड़की किसी काम से बाहर गई हो, उसे घर वालों से ज्यादा अपने आस - पड़ोस के भाइयों से डर लगता कि वो न देख ले । क्योंकि उसे पता है वो सवाल कर सकते हैं उस से , लेकिन वो नहीं कर सकती।
मुझे लगा कि ये आंटी मुझे गलत लड़की तो नहीं समझ रही । फिर मैंने सोचा छोड़ो जिस की जैसी सोच , अब आनंद बिहार आ गया था। एक घण्टे के आखिरी सफर में आंटी ने पूछा बेटा ये कौन सी जगह है ? मैनें कहा ये आनंद बिहार है। अच्छा बेटा
गाजियाबाद के लिए बस कहां से मिलेगी ?
पुल के दूसरी तरफ से ।
मैंने बोला हां आंटी जी
तुम कहां जा रही हो ? कॉलेज जा रही हूं मैं
मुझे ऊपर से नीचे तक देखा ।
फिर छोड़ी सी स्माइल दी ।
शायद उन्होंने सोचा होगा कि कॉलेज की लड़कियां होती ही ऐसी हैं मेरे मोबाईल को भी ऐसे देख रही थी। जैसे किस ने इस लड़की को मोबाइल पकड़ा कर गलती कर दी।
आम तौर पर आज भी कॉलेज के बारे में समाज की यही मानसिकता बनी हुई है कि कॉलेज में जा कर लड़के - लडकिया बिगड़ जाते हैं और अमीर मां -बाप के बिगड़े हुए बच्चें ही जाते है कॉलेज । जिनके पास समय ही समय होता हैं।
लेकिन कॉलेज ऐसा मन्दिर है जहां लड़की लड़के को समझती , लड़का लड़की को समझता । जिस समाज में लड़की का लड़के से बात करना सही नहीं समझते । यहां ऐसी कोई पाबंदी नहीं होती ।
एक दूसरे के लिए जो गलत फहमियां होती है खत्म हो जाती है दोनों एक दूसरे के काम की रिस्पेक्ट करतें हैं उसी के साथ कब दोनों अच्छे दोस्त बन जाते हैं पता ही नहीं चलता।
लड़की जिसकी पहले लड़की ही दोस्त हुआ करती थी । आज उसका एक लड़का बहुत अच्छा दोस्त बन जाता है। और लड़का जो हर लड़की को बंदी बनाने की सोचते थे ,आज उसे दोस्ती पर भी भरोसा हो गया है कि लड़का लड़की भी अच्छे दोस्त हो सकते हैं।
प्रिया गोस्वामी
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