रूढ़िवादी प्रथाओं की बलि चढ़ती नन्हीं बच्चियां

राजस्थान का सफर

राजस्थान की भूमि राजपूतों के नाम से जानी जाती हैं। इस भूमि पर वीर पैदा हुए। यहां की मिट्टी में अलग सा अपनापन है। चाहे यहां की भाषा हो या गाने सभी अपना बना लेते हैं। वेशभूषा के तो लोग दिवाने हैं।
कहतें है कि जिस समाज में अच्छाई है तो कुछ बुराई भी जरूर होती हैं। यहां के रूढ़िवादी रीतिरिवाजों ने महिलाओं को सिर्फ भोग की वस्तु ही समझा हैं तो
दूसरी तरफ उरमूल फाउडेशन, इन रूढ़िवादी रीतिरिवाजों जैसे- महिला शिक्षा, बाल विवाह, मृत्यु भोज विवाह आदि के खिलाफ काम कर रहा है।

उरमूल ने अपनी शुरुआत 1981 से की

समाज में कट्टर बन चुकी। इन प्रथाओं के खिलाफ उरमूल खड़ा हुआ। लोगों को जागरूक किया। बाल विवाह , मृत्यु विवाह से भविष्य में होनें वाले नुकसान  से लोगों को अवगत कराया तथा सविधान में इस प्रथा के खिलाफ बने कानून की जानकारी दी । लोगों को समझाया कि 18 साल से पहले शादी करना कानूनी जुर्म है। जो व्यक्ति इसके खिलाफ जाएगा। उसे जेल  जाने के साथ -साथ उचित जुर्माना लिया जा सकता है।

उसी के साथ उरमूल ने महिला शिक्षा पर भी जोर दिया । घर से निकाल कर उन्हें स्कूल तक पहुंचाया, दूर स्कूल होनें के कारण बीच में ही पढ़ाई छोड़ चुकी छात्राओं के लिए सरकार की मदद से पास में ही स्कूल बनाने की पहल की गई। बाल विवाह से पीड़ित महिलाएं, जो अपने समय मेँ पढ़ाई नहीं कर पाई । उनके लिए तीन महीनें के कैम्प लगाए गए। इस दौरान उन्हें इस लायक कर दिया कि अब यह अपनी रोजमरा की जिंदगी में इस शिक्षा का प्रयोग कर सकती हैं। अब वह लिख सकती है पढ़ सकती है और अपने यहां तक की हस्ताक्षर कर सकती हैं। तथा आज ये अपने मौलिक अधिकारों से वाकिफ़ भी हैं।

महिला शक्तिकरण की ओर शिक्षा के साथ ही उरमूल ने घरेलू महिलाओं के लिए उनकी योग्यता के हिसाब से घर में ही काम उपलब्ध कराया। घर परिवार में पति की मार खाती औरत का आय का एक सहारा बनी शिक्षा।
आज उरमूल अलग -अलग  क्षेत्रों में काम कर रहा है। लेकिन इन क्षेत्रो के द्वारा महिलाओं को मजबूत करना व महिलाओं को सभी क्षेत्रों की तरफ ध्यान आकर्षित करना है ताकि महिलाएं घरेलू काम छोड़ कर बाहर क़ी दुनिया में कदम रख सकें। कपड़ा डिजाइन, उरमूल कई नामी कंपनी के ऑडर तैयार करता हैं। उन कपड़ों पर कढ़ाई घरेलू औरते करती हैं उन्हें प्रत्येक पीस के हिसाब से पैसे मिलते हैं। सभी काम महिलाओं की देखरेख में पूरे किए जाते है। समय - समय पर महिलाओं को नई  डिजाइन सिखाने के लिए एक्सपर्ट बुलाए जाते है। उरलूम का स्कूल उरलूम ने गरीब बच्चों के लिए स्कूल भी खोलें। जहां कॉपी - किताब व खाना पीना फ्री मिलता है। प्रत्येक सप्ताह महत्वपूर्ण विषयों जैसे वोट का अधिकार क्या है? किशोरावस्था व महामारी में होने वाली समस्या क्या है?

पुराणिक काल से महामारी के समय स्त्री को समाज के द्वारा दी जाने वाली उत्पीड़न के खिलाफ लड़कियों को जागरूक करना। ये खास क्लास तीन घण्टे की होती है। लड़कियों की जिस विषय पर क्लास दी जाती हैं। उसके साथ ही उन्हें उस विषय की किताबें भी जाती दी है। इसी के साथ उन्हें एक नोट बुक, एक पैन, खाने के लिए बिस्किट्स दिए जाते है। लड़कियों को लाने ले जाने की सारी जिम्मेदारी उरमूल फाउंडेशन की होती है।

ऑर्गेनिक फसल : महिला मुद्दों के साथ किसानों को आर्गेनिक फसलों के लिए प्रोत्साहित भी करता है कि कैसे किसान कम पैसे में, घरेलू खाद से, बिना कैमिकल के अच्छी फसल उगा सकता हैं। इसका उदाहरण खुद उरमूल ने ऑर्गेनिक फसलों को कैम्पस में उगा कर दिखाया है।

शौचालय : जहां सोच वहां शौचालय, प्रधानमंत्री के इस सपने को पूरा करने के लिए उरमूल ने लोगों को शौचालय के प्रति जागरूक कराया। तथा बीस हजार से ज्यादा शौचालय बनाये गए ।

गांव राजस्थान का : बच्चू

अपने दो दिन के ट्रिप के दौरान हमें राजस्थान के गांव में जाने का मौका मिला। वहां हमने देखा कि आज भी औरते पर्दा रखती हैं। तपती धूप में लम्बे पर्दे में पूरे दिन  घर- बाहर का काम करती । उसी के साथ खेती की सारी जिम्मेदारी भी संभालती है। ये देख कर बहुत दुख होता है कि राजस्थान में आज भी मृत्यु विवाह, बाल विवाह आज भी अस्तिव में है। लड़कियों की शादी आज भी कम उम्र में तय हो जाती हैं। वहां लड़कियां सिर्फ नाम के लिए पढ़ रही होती हैं। ज्यादातर लड़किया प्राइवेट स्कूलों में पड़ती हैं। जो केवल एग्जाम देने के लिए स्कूल, कॉलेज जाती हैं।

जब हमनें लड़कियों से बात करने की कोशिश की तो पहले वे शर्मा रही थी। उनकी उम्र लगभग 6,14, 16, 18 के आस- पास होगी । जब हमने अपने बारे मेँ बताया तो हमारे साथ धीरे धीरे वह बातें करने लगी। हमने उनकी पढ़ाई के बारे में पूछा तो बताया कि मेरी दो छोटी बहन स्कूल जाती हैं। हमनें बोला तुम? तो बोली जाती हूँ कॉलेज पेपर देने। हमने पूछा कि सब्जेक्ट क्या लिया है तुम ने ? तो कुछ अटपटे जबाब देने लगी। उनमें से दूसरी लड़की बोली कि इसे हिंदी पढ़नी नहीं आती। हमनें बोला क्या लिखती हो पेपर में , क्या पढ़ती हो तुम ?
लड़की बोली जो मन में आता हैं वहीं लिख देती हूँ।   घर पर किताब नहीं पढ़ती तुम ? बोली घर में काम से छुटकारा नहीं मिलता। मेरा रिश्ता भी तय हो गया है क्या करना पढ़कर। उस लड़की के हाथ काम करते इतने काले, सूजे हुए थे। जैसे मेहंदी लगी हो ।

बात -करते हुए मेरा ध्यान गया, उनके गले के लोकिट की ओर क्योंकि सभी एक जैसे थे। जब हमने पूछा कि क्या है ये तो सबसे छोटी लड़की बोली मंगलसूत्र है। उन में से एक बोली आयना की शादी हो गई। जिसकी उम्र सिर्फ छः साल थी। जब हम ने आईना से पूछा कि ये सच्च है उसने बताया कि दीदी मेरी बहन की शादी भी साथ में हुई हैं।

बहन कितने साल कि है? एक लड़की ने बताया कि छ महीनें की ही है अभी उस समय आईना बहुत खुश हो रही थी। उसे नहीं पता कि परिवार वालों ने उसकी
मासूमियत का क्या फायदा उठाया है। हमनें बड़ी लड़की से पूछा कि तुमने अपने पति को देखा हैं? तो बोली हम क्या करेंगे देखकर। अपनी भाषा में बोली
मां बाप देख ले तो हम का करे देखकर।

यहां पूरे गांव में तीन ही शौचालय थे।

जहां गांव के लड़के सुंदर, हुष्ट पुष्ट थे। जो पढ़ भी रहे थे। उनके पास मोबाइल भी था वहीं लड़कियां कमजोर कम उम्र में ज्यादा उम्र की दिख रही थी। मैंने किसी भी लड़की के पास मोबाइल नही देखे। राजस्थान की जिंदगी महिलाओं के लिए किसी संघर्ष से कम नहीं हैं। वहां पानी की कमी है। पानी लाना भी महिलाओं की जिम्मेदारी होती हैं। राजस्थान में पेड़ पोधे कम होना। दूर दूर तक सिर्फ आप को रेत ही रेत नजर आएगा। ऐसे में महिलाओं का खुले में शौच करना किसी अभिशाप से कम नहीं हैं। किसी भी समय पुरूष के आने का डर लगें रहतें हुए शौच करना। आप और हम इमेजिन भी नहीं कर सकते है कि उन पर क्या बीतती होगी।

क्या है मृत्यु विवाह  ? जब घर या आस पड़ोस में किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है। उसकी मृत्यु के कुछ दिन प्रश्चात मृत्यु भोज दिया जाता है। गांव और रिश्तेदारों को निमंत्रण भी दिया जाता हैं। उसी समय अपने घर की बेटी या बेटा का रिश्ता किसी भी रिश्तेदार के बच्चे के साथ तह कर। उसी समय विवाह कर दिया जाता हैं।उसे मृत्यु भोज विवाह कहा जाता है।

आर्थिक कारण : कहते है कि इन प्रथाओं का प्रचलन आर्थिक कारणों से नहीं थम रहा हैं। लड़की के परिवार वालों के पास पैसे नहीं होते। इसलिए जल्दी लड़की को रिश्ता तय कर दिया जाता हैं। ऐसा सोचना थोड़ा ठीक हो सकता है लेकिन ये नहीं भूलना चाहिए कि किसी भी प्रथा को यूं कायम रहना, पितसत्तामक समाज की सोच पर भी आधारित है। जिसमें वो तय करता है कि लड़की किस से शादी करेंगी। कहा तक पढ़ेगी, कितने बच्चें पैदा करेगी, और क्या पहनेगी। उनके लिए लड़की एक बोझ होती है। जिस वजह से उन्हें इसकी चिन्ता
लगी रहती है।

अगर, लड़की पढ़लिख गई। तो समाज की सभी प्रथाओं को तोड़ देंगी और अपनी मर्जी से शादी कर लेगी। तो समाज में वो मुँह दिखाने लायक नहीं बचेंगी। इस कारण पास में ही स्कूल होनें पर भी लड़कियों को स्कूल नहीं भेजा जाता। अगर लड़की का नाम स्कूल में मिलने वाले वजीफे के लालच में लिखवा दिया जाता है तो उन्हें घर के काम मेँ इस कदर उलझा कर रखते हैं कि न वो स्कूल जा पाती न पढ़ पाती। सरकारी स्कूल तो पहले ही दहनीय है कि बच्चे बिना पढे लिखे पास हो जाते। ऐसे में छात्राओं को शिक्षा का अर्थ सही मायनों में कैसे पता चलेगा?

इसलिए अपनी रूढ़िवादी परम्पराओं में सीमित समाज। बचपन में ही बच्चियों का विवाह कर देते है। ताकि वह एक लड़के के सिवा किसी ओर के बारे न सोच पाए। सोचें तो सिर्फ अपनी शादी के बारे में। उस से प्यार करने और  जीवन साथी चुनने का हक छीन लेते है।

उरमूल फाउंडेशन जो कर रहा है वो काबिले तारीफ है इतना आसान नहीं होता। रूढ़िवादी प्रथाओं को तोड़ना। जिस समाज में लड़कियों को पढ़ाना पाप समझा जाता। उन लड़कियों को स्कूल तक लाना। ये आसान कतई नहीं होगा। उरमूल के इस कदम की जितनी सराहना की जाए कम है। आशा है ये ऐसे ही समाज के हित में काम करता रहे। लोगों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करता रहे।

प्रिया गोस्वामी

Comments

  1. Really it's very knowledgeable artical..must be applied .....hmmm. conservatism should be removed from our society ,mind, and country..then we would get succes..

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