जिंदगी लाइव

जिंदगी लाइव  पुस्तक पर परिचर्चा

      वक्ता   (लेखक ) प्रियदर्शन  ये पुस्तक 26 / 11 में मुंबई पर हुए हमले पर केंद्रीत  हो कर लिखी गयी हैं   क्योंकि अभी तक 26/ 11  हमले पर कई पुस्तके लिखी गयी , जिसे हमारे टीवी चैनलो ने भी खूब चलाया , पर  उस हमले में आम जनता कि समस्या को नजरअंदाज कर दिया , यहाँ तक क़ि!  उस दिन ही पूर्व प्रधान मंत्री  vp   सिंह की मृत्यु भी हुई थी ! फिर भी चैनेलो पर 26/ 11 का हमला लगातार  चल रहा था  उन्होनें पुस्तक के मुहत्वपूर्ण
अंगो पर बात की !
इस में तारीख से लेकर किरदारों तक सभी वर्तमान के थे !  उस के साथ ही बताया की कभी आलोचक को मीठा नही होना चाहिए ! उसे सख्त भी होंना चाहिए , फिर उन्होनें स्त्री विमश पर बात की !  किस तरह आज मशीनी करण के युग में स्त्री सभी किरदारों को निभाती हैं जैसे उनके उपन्यास में शुल्भा का हैं जो एक टीवी चैनल में एंकर हैं जो की 26/ 11 की एंकरिग कर रही थी ! जब की उनका खुद का बच्चा खो गया था ,  इन किरदारों के माध्यम से उस समय की परिस्तिथियो को दिखाया गया हैं इसके साथ ही उन्होनें  सोशल मीडिया की बात कि - आज हमें यह मंच अनुभव करने नही देता , तभी हम आज अनुभव व  जिंदगी के पलो को जैन से जी ही नही  पाते हैं इस कारण  हमारे अंदर याद करने की क्षमता नही बचती !  हम एक किताब को सिर्फ मनोरजन की पुस्तक समझ कर पढ़ते हैं जबकि वह हमारे समाज , परिवार  की ही कहानियां होती हैं उसे अपनी असल जिंदगी में उतारना ओर भी आवश्यक हो जाता हैं

संजीव कुमार  जी  - एक कहानीकार , कवि  ,-   संजीव जी ने  सबसे पहले इस पुस्तक को क्यों पढ़ना चाहिए ! इस पर बात कि , क्यों यह पुस्तक दूसरे उपन्यास से अलग है  क्या कारण हैं जिस तरह से उपन्यास शुरू होता हैं अतः में भी उसी तरह मजबूती से रहता हैं क्योंकि सभी शब्दों को बहुत ही ध्यान से  तथा  नपी - तुली लाइन में लिखा  गया हैं ताकि शब्दों  के अर्थो को सही मायनो में पाठको तक आसानी तक पहुँचाया जा  सके !

उदय प्रकाश -  मनुष्य मरने के बाद बोलता नहीं हैं
मनुष्य मरने के बाद सोचता नहीं हैं
जब मनुष्य सोचता और बोलता नहीं हैं
तो वह मर जाता हैं ---
उपन्यास का नया तेवर व विधा हैं
इस में अप्रत्यक्षित मोड़ कई हैं जिस का अनुमान आप लगा नही सकते , तथा इसमें सयोंग का समावेश काफी हैं गतिशीलता उपन्यास हैं जिसमें यह उपन्यास कथावस्तु के साथ काफी अधिक गतिशीलता हैं और  शुल्भा एक  महत्वपूर्ण किरदार हैं  जिस के प्रेम की शुरुआत 2008 में अक्षरधाम में हुए हमले से हुई थी !   साथ ही उन्होंने अपने यक्तिगत अनुभव भी साझा किये ! इसी के साथ पाठकों को लेखक से प्रशन करने का मौका दिया , ताकि अगर उन से उपन्यास का कोई ऐसा पक्ष छूट गया हो तो ,आगे से उसका भी ध्यान रखा जा सके  एवम् उनके विचार क्या हैं इस का भी पता चल गया  ! यह कार्यक्रम के  पूरी तरह सफलता का  अंदाजा ! इसी से लगा सकते हैं की कार्यकम  तय  समय के बाद खत्म हुआ !
👍

प्रिया गोस्वामी

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

खत्म होता बचपन

मंटो एक बदनाम लेखक ( पुस्तक का रीव्यू)

क्योंकि मैं चुप हूँ