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क्योंकि मैं चुप हूँ

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मैं चुप हूँ  क्योंकि  मुझे चुप रहना सिखाया गया है  मैं चुप हूँ  क्योंकि  मुझे इज्जत बचानी सिखाई  गई है।  मैं चुप हूँ  क्योंकि मुझे  अपनी सीमा में रहना सिखाया गया है  मैं चुप हूँ  क्योंकि मुझे रिश्तें निभाने सिखाए गए हैं। मैं चुप हूँ क्योंकि मुझे सहना सिखाया गया है।  मैं चुप हूँ  क्योंकि मेरे जिस्म को ही  मेरी आबरू बनाया गया है।  मैं चुप हूँ क्योंकि  मुझे कमजोर ,बेसहारा , नाजुक , भोली -भाली व बेचारी  बताया  गया है।  मैं चुप हूँ क्योंकि मुझे  पुरूष के अस्तित्व में रहना सिखाया गया है।  मैं चुप हूँ क्योंकि   मुझे  पुरूष से डरना सिखाया गया है।  मैं चुप हूँ क्योंकि  मुझे आज्ञा का पालन करना सिखाया गया है।  मैं चुप हूँ क्योंकि  मुझे रोना सिखाया गया है।  मैं चुप हूँ क्योंकि  मुझे झुकना सिखाया गया है।  मैं चुप हूँ क्योंकि मुझे  एक अच्छी लड़की बनना सिखाया गया है।  मैं चुप हूँ क्योंकि मुझे   दान किया जाता है।  मैं चुप हूँ क्योंकि  मुझे संस्कारी बनाया गया है।  मैं चुप हूँ क्योंकि   मुझे सिर्फ प्रेम करना सिखाया गया है। 

प्रेम में

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प्रेम में  क्या गुलाबों की तरह  काटों पर चलोगें क्या ?  जात, धर्म , समाज छोड़ कर  इंसान बनोगे क्या ? कामवाली ना समझकर  साथी बनाओगे क्या ?  घर की रानी ना बनाकर , दिल की महारानी बनाओगे क्या ?  जिस्म से प्यार ना करके   रूह से प्यार करोगे क्या ?  बड़ी- बड़ी बातें ना करके  सच्च बोलकर  दिल जीतोगे क्या ?  दूर होकर भी  साथ रहोगे क्या ?   दिल टूटने पर भी  मनाओगे  क्या ?  जिम्मेदारी न समझकर   इबादत करोगे क्या ?  गलती करने पर  ताने मारने के बजाय  सुधारोगे क्या ?  दिल से ,प्यार खत्म होने पर   बेहिचक बताओगे क्या ।   घर की इज्जत ना मानकर  इंसान समझोगे क्या ?  फड़फड़ाते परों को ना कुचलकर  उड़ना सिखाओगे क्या ?   सिर्फ मेरे ही  मेरे रहोगे क्या ?   प्रिया गोस्वामी 

मेरी कविता

 मेरा अस्तित्व  मेरी आवाज  मेरे शब्द  मेरी पीड़ा  मेरे अहसास  मेरी करूणा  ( गाय, सीता , सुंदर सुशील ,सीधी सादी,  बेचारी , मूंग  लड़कियां बोलने लगी है।)   कभी पढ़ो तो हमें