खत्म होता बचपन आजकल शहरीकरण कि चपेट में आये ,बच्चे, अकेलेपन का शिकार हो रहे हैं व्यस्त जिंदगी में माता पिता अपने बच्चों को ज्यादा समय नहीं दे पाते । उन्हें सही गलत अन्यथा नैतिकता का पाठ नहीं पड़ा पाते हैं उसी के चलते उनमें अहिंसात्मक भावना का भाव पनपता है इसके कई कारण सामने आए है जैसे कि परिवार के द्वारा बच्चों को समय न देना। सिर्फ मिलने पर उनकी पढ़ाई के बारे में पूछना तथा कम नंबर आने पर छत्तीस तरह के ट्यूशन लगा देना । सारा समय पढ़ाई को देने पर भी बच्चों को माता पिता का प्यार ना मिलना। ,पढ़ाई के प्रति क्रोध को जिंदा करता है उन्हें लगता है कि माता पिता उसे नहीं बल्कि उसकी पढ़ाई को प्यार करते हैं पढ़ाई के दबाब में नाबालिको की । कुछ ऐसी ही घटनाएं सामने आ रही हैं पहले प्रद्युमन केस में जिसमें एग्जाम की डेट कैंसिल कराने के लिए एक र्सीनियर छात्र जूनियर छात्र की हत्या कर देता है ऐसा ही दूसरा मामला जिसमेँ प्रधानाचार्य का प्रोजेक्ट की फाइल में हस्ताक्षर ना करने पर प्रधानाचार्य को जान से हाथ धोना पड़ा । ऐसी ही खबर मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल झाबुआ जिले की एक शासकीय आवासीय स्कूल से
मंटो एक बदनाम लेखक मंटो एक बदनाम लेखक विनोद भट्ट ध्दारा लिखी पुस्तक में । मंटो के जीवन में चले संघर्ष को पुस्तक में बहुत सरल भाषा में बताया गया है। कि किस तरह मंटो की कहानियों पर अश्लीलता का जुर्माना लगता रहता था ।तब भी मंटो ने हार न मान कर वैश्यों पर और समाज में चल रही परिस्थितियों को कहानियों के माध्यम से उजागर करता रहा। ,, उसे अश्लील लेखक की उपाधि दी गईं थी। इसके जितने पाठक नहीं उतने दुश्मन थे। जो कुछ थे ,वो समाज के डर से बाहर नहीं आ सकते थे । इस कारण था मंटो का समाज में जो घट रहा है उसे लिखना। जो देखना नहीं चाहता उसे दिखाना। किताब के कुछ दिलचस्प लाइन अगर आप मेरी कहानियां बर्दाश्त नहीं कर सकते तो मान लीजिए कि यह जमाना ना काबिले बर्दाश्त है सहनशक्ति के बाहर का, मेरे लेखन शैली में कोई बनावट नहीं है मुझे पब्लीसिटी स्टेटस पसंद नहीं ह मंटो की कुछ पंक्तियां याद आती हैं जिससे पढ़ कर लगता है कि मंटो एक ऐसा लेखक था जो अपने कहानियों के माध्यम से समाज को आईना दिखाता रहा। मंटो अपनी कहानियां में लिखी जिस पर लंबे समय तक विवाद होता रहा 1942 में लिखी कहानी काली सलवार ने उसको साह
मैं चुप हूँ क्योंकि मुझे चुप रहना सिखाया गया है मैं चुप हूँ क्योंकि मुझे इज्जत बचानी सिखाई गई है। मैं चुप हूँ क्योंकि मुझे अपनी सीमा में रहना सिखाया गया है मैं चुप हूँ क्योंकि मुझे रिश्तें निभाने सिखाए गए हैं। मैं चुप हूँ क्योंकि मुझे सहना सिखाया गया है। मैं चुप हूँ क्योंकि मेरे जिस्म को ही मेरी आबरू बनाया गया है। मैं चुप हूँ क्योंकि मुझे कमजोर ,बेसहारा , नाजुक , भोली -भाली व बेचारी बताया गया है। मैं चुप हूँ क्योंकि मुझे पुरूष के अस्तित्व में रहना सिखाया गया है। मैं चुप हूँ क्योंकि मुझे पुरूष से डरना सिखाया गया है। मैं चुप हूँ क्योंकि मुझे आज्ञा का पालन करना सिखाया गया है। मैं चुप हूँ क्योंकि मुझे रोना सिखाया गया है। मैं चुप हूँ क्योंकि मुझे झुकना सिखाया गया है। मैं चुप हूँ क्योंकि मुझे एक अच्छी लड़की बनना सिखाया गया है। मैं चुप हूँ क्योंकि मुझे दान किया जाता है। मैं चुप हूँ क्योंकि मुझे संस्कारी बनाया गया है। मैं चुप हूँ क्योंकि मुझे सिर्फ प्रेम करना सिखाया गया है।
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