खत्म होता बचपन

खत्म होता बचपन
आजकल शहरीकरण  कि चपेट में आये ,बच्चे, अकेलेपन का शिकार हो रहे हैं व्यस्त जिंदगी में माता पिता अपने बच्चों  को ज्यादा समय नहीं दे पाते । उन्हें सही गलत अन्यथा नैतिकता का पाठ नहीं पड़ा पाते हैं उसी के चलते उनमें  अहिंसात्मक  भावना का भाव  पनपता है इसके कई कारण सामने आए है जैसे कि  परिवार के द्वारा बच्चों को समय न देना। सिर्फ मिलने पर उनकी पढ़ाई के बारे में पूछना तथा कम नंबर आने पर छत्तीस तरह के ट्यूशन  लगा देना ।  सारा समय पढ़ाई को देने पर भी बच्चों को माता पिता का प्यार ना मिलना। ,पढ़ाई के प्रति क्रोध को जिंदा करता है उन्हें लगता है कि माता पिता उसे नहीं बल्कि उसकी पढ़ाई को प्यार करते हैं पढ़ाई के दबाब  में नाबालिको की  । कुछ  ऐसी ही घटनाएं सामने आ रही हैं पहले प्रद्युमन केस में जिसमें एग्जाम की डेट कैंसिल कराने के लिए एक र्सीनियर छात्र जूनियर छात्र की हत्या कर देता है ऐसा ही दूसरा मामला  जिसमेँ  प्रधानाचार्य का प्रोजेक्ट की फाइल में हस्ताक्षर ना करने पर प्रधानाचार्य को जान से हाथ धोना पड़ा । ऐसी  ही खबर मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल झाबुआ जिले की  एक शासकीय आवासीय स्कूल से आई ।जहां होमवर्क ना करने पर छात्र को सजा   कक्षा के मित्रों के ध्दारा 6 दिन में 168 थप्पड़  मारे जाने थे। कुछ इस तरह की ही खबर कानपुर के स्कूल से आई । वहां पर भी  अध्यापक के कहने पर छात्र को  कक्षा मित्रों ने   50 थप्पड़ मारे । दोनों ही केसो में छात्र स्कूल जाने के कई तरह के बहाने बनाने लगे । इस तरह के व्यवहार  ही छात्रों को  गलत रास्ते पर जाने को मजबूर करते है अन्यथा  अपराध करते हैं  इस का ताजा उदारहण है नार्थ रोहिणी  में डाकघर से पैसे चोरी करने के मकसद से दशमी वीं के   नाबालिक  स्टूडेंट्स ने गार्ड की हत्या कर दी। रेप कि घटनाओ में भी अधिकतर नाबालिको का  हाथ ही  पाया जाता है अब सवाल ये  है कि शिक्षा का मंदिर कहलाने वाले  विद्यालय आज अपराध के  मंदिर क्यों  बनते  जा रहे है। अब माता पिता को भी समझना होगा, कि सिर्फ पैसे, गिफ्ट, महंगी शिक्षा के बलबूते पर वो अपने बच्चों का विकास नहीं कर सकते। पैसे ही सब कुछ नहीं होते । इस  कच्ची उम्र मैं बच्चों को माता-पिता अध्यापकों के  प्यार की आवश्यकता होती है ना केवल  अधिक नंबरो कि ,उन्हें अपने मन की करने दें।  उन्हें  अपने बारे में सोचने समझने के आजादी दे।  माता पिता को समझना होगा ,कि कम नंबर बच्चों का भविष्य तय नहीं करते। क्योंकि हर बच्चा हर क्षेत्र में अच्छा नहीं होता अपने बच्चों पर विश्वास रखे । उनका साथ दे। उन्हें  ज्यादा से ज्यादा समय दे, ताकि बच्चे  अपनी माता पिता के प्रति अपनी अहमियत को समझ सकें।  क्योंकि यही युवा हमारे आने वाले देश की धरोहर है।

प्रिया गोस्वामी, दिल्ली

Comments

Popular posts from this blog

मंटो एक बदनाम लेखक ( पुस्तक का रीव्यू)

ज्ञान क्या है सोनाक्षी सिन्हा कितनी सही कितनी गलत