पत्रकारों का संघर्ष
पत्रकारों का संघर्ष ( गौरी लंकेश )
गौरीलंकेश एक वरिष्ठ व महिला पत्रकार
आज गौरीलंकेश के नाम के साथ महिला लगाना आवश्यक हो जाता हैं क्योंकि कल तक मीडिया में एक स्त्री का आना इतना ही असम्भव था !जितना कि चाँद पर जाना , पर समय के साथ वीर माता- पिता अपनी बेटियों को इस सफर में भेजने को तैयार हो गए , सिर्फ इस आस में की देश की न्यायालय हैं जो पत्रकारों की रक्षा करेगी न्याय देगी , आखिर ये भी समाज सेवा हैं जो समाज को सही गलत का आईना दिखाती हैं इसलिए सरकार का परम दायित्व बनता हैं कि उनकी रक्षा करें !
पर आज
आज मीडिया में महिला पत्रकारों कि संख्या ,पुरुष पत्रकारों से भले ही कम हैं पर आज पत्रकारिता में जिस तरह से पत्रकारों कि हत्याये हो रही हैं वो बहुत ही चिन्ताजनक हैं
हालांकि, स्वंतत्रता से पहले और बाद में भी समय - समय पर शक्तिशाली ताकतों ने सत्य को दबाने कि कोशिश कि हैं
पर जब अब पत्रकारों के साथ जनतंत्र की ताकत हैं और देश सेवा कि भावना से सभी दायत्वों का पालन कर रहें हैं तो लगातार सच्चे पत्रकारों की हत्यायें कराई जा रही हैं वो पवित्र आत्माए हैं रामचन्द्र छत्रपति 2002, डॉ नरेंद्र दाभोलकर 2013 ,गोविंद पानसरे और कलबुर्गी 2015 में इन सभी पत्रकारों की की हत्यायें हुई हैं अभी तक इन पत्रकारों को इंसाफ भी नही मिला था कि 5 सितम्बर 2017 को जानी -मानी वरिष्ठ पत्रकार गौरी लंकेश ! कि हत्या करा दी जाती हैं जो कि हिंदुत्ववादी साम्प्रदायिक राजनीती की कट्टर विरोधी थी , कर्नाटक से निकले वाली साप्ताहिक पत्रिका' गौरी लंकेश
पत्रिके की संपादक थी ! आशय जनकवाली बात हैं की जिस तरह सभी पत्रकारों की हत्या की गयी !उसी तरह लंकेश की भी हत्या कि गयी हैं आज हमारे बीच निस्वार्थ भाव से व सत्य के लिए लड़ने वाले पत्रकार नही हैं दूसरी तरफ गोदी मीडिया का बोल वाला हैं जो हिन्दू मुस्लिम पर ही अटके रखती , अगर कोई पत्रकार सच्च बोलने की हिम्मत कर भी लेता हैं तो उसे धमकी दी जाती हैं नही मानने पर हत्या करा दी जाती हैं ज्ञात हो तो पटियाला कोट में पत्रकारों की मौत का रहस्य अभी तक नही खुला , शुरू से ही सरकार पत्रकारों की मौत पर गम्भीर रुख नही अपनाया है ! और जब हमारे देश के प्रधानमंत्री जिस व्यक्ति को फॉलो करते हो ,वही व्यक्ति लंकेश को आपत्तिजनक शब्द बोले , तब ये बहुत शर्म कि बात हैं , सोचने वाली बात है जब रेवाड़ी में छात्राएं छेड़ छाड़ से परेशान हो कर अनशन कर रही थी , बी एच यू में लड़किया न्याय मांग रही थी , तथा जब 15 साल बाद जब साध्वी को न्याय मिला ,कहा थे वो राजनेता जो बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा देते हैं क्या किसी ने उनकी सुध लेने की कोशिश ना ही ट्विटर पर उनका उत्साह बढ़ाया क्यों कोई नेता बेटियों के साथ नही खड़ा रहता ! क्यों ! जब की मिनट - मिनट पर विपक्ष के जबाब देने के लिए समय रहता क्यों उन्हें औरतों की समस्या , समस्या नजर नही आती , अभी भी क्या इनके मन में औरतों के लिए कोई संवेदना बची ?
अब इन्हें अच्छी तरह से समझ जाना चाहिए की अब औरत अबला नही सबला हैं जो वक्त आने को समूची राजनीती का अस्त्तिव मिटा
सकती ! अगर ! इसी तरह महिलाओ के ख़िलाफ़ कदम रहे तो कोई भी माता पिता अपने बेटा, बेटी को कभी पत्रकार बनने की सलाह कभी नही देंगे, क्योंकि जिस देश की सेवा करने जा रहे ! वहाँ उन की सुरक्षा करने वाला कोई नही हैं उनके परिवार की सुनने वाला कोई नही ! जो जनतंत्र की आवाज बनते थे , आज उन्हें सुरक्षा चाहिए , आज परिस्तिथियां है की अगर कोई पत्रकार सच्च बोलता हैं तो वो कुछ दिन भी पत्रकारिता में नही रह सकता ! उसके पास चाटुकारिता करके जनता को झूठ दिखाने के सिवाय कोई विकल्प नही होता !
कहा हैं लोकतंत्र ?
कहा है आजादी ?
प्रिया गोस्वामी
डॉ भीम रॉव अम्बेडकर कॉलेज , नई दिल्ली
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