मै क्या खाऊ ?
मै क्या खाऊ ?
गरीब जब ये बोलता है कि में क्या खाऊ तो उसका मतलब यह है कि उसके पास दो बक्त का खाने का भी कोई जुगाड़ नही होता है उसे ये नही पता कि कल क्या खायेगा! तब वह बोलता है कि मै क्या खाऊ ?
अभी एक घटना भी इस शब्द का शिकार हुई है जब हमारे देश का प्रशासन एक बच्ची का आधार कार्ड ना होंने पर । एक गरीब को राशन नही दिया जाता ! खाना ना मिलने कि वजह से 8 दिन बाद संतोषी भात भात कहती हुई आखरि सास लेती हुई मर जाती है | क्या संतोषी के घर वालो के पास बम था, या वो आंतकबादी थे , जो एक मामूली राशन की दुकान पर आते ! कोई नियम या कोई कानून किसी की जिंदगी से बढ़कर नही हो सकता है दूसरी तरफ 450 करोड़ रु का अनाज से सड़ने से 68.5% आबादी कुपोषण की शिकार है प्रतिवर्ष पांच साल से कम आयु के दस लाख बच्चे कुपोषण के कारण मर जाते है !
संतोषी पहली लड़की नही है जो भुखमरी का शिकार हुई है ना जाने कितनी बच्चे इस भूख की तड़प में मर गए ! उस का जिम्मेदार हमारा प्रशासन है जो आजादी के 70 साल होने पर भी बिफल रहा । हमारा देश 119 देशो में 100 नंबर हो गया , ग्बोबल हगर इंटेक्स में भारत का 97 से 100 वे स्थान पर आ जाना बहुत शर्म की बात है
दूसरी तरफ जब अमीर ये बोलता है कि
क्या खाऊ तो उसके पास अनेक व्याजन के विकल्प होते है जो कि खाने के लिए चुनाव करने में असमर्थ है आए दिन पार्टीयो में बर्बाद होता खाना ,उसे फेक दिया जाता है । और गरीब भूख से दम तोड़ देता है जबकि एक
लाख का सोना खरीदने पर कोई आधर कार्ड नही दिखाया जाता ,क्यों ? सारे कानून गरीबो के लिए है अमीरो के लिये कुछ नही। क्यों पेड़ो ये काटे , प्रदूषण ये करे , भ्र्ष्टाचार ये करे , लोगो का शोषण ये करे , इत्यादि । अंतर्राष्ट्रीय खाद्द निति शोध संस्थान ( इंटरनेशनल फूड पॉलिस रिसर्च इंस्टिट्यूट के मुताबिक देश के कुल जमा धन का आधे - से ज्यादा हिस्सा एक प्रतिशत आबादी के पास है इसका सीधा अर्थ यह निकलता है कि देश में होने वाली आर्थिक तरक्की का लाभ मुठी भर लोग ही उठा पा रहे है । आप ही सोचे काला धन किसके पास है|
प्रिया गोस्वामी
हिंदी पत्रकारिता की छात्र , डॉ भीम राव अम्बेडकर कॉलेज , (डीयू )
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