संस्थान बड़े , दशर्न छोटे

संस्थान बड़े  दर्शन छोटे
संस्थान बड़े और दशर्न छोटे ,आज के दौर में यह  पंक्ति जायज हैं क्योंकि आधुनिकरण के समय में   सभी को  ज्यादा से ज्यादा   पैसा चाहिए । ताकि वह अपनी  जरूरतों को पूरी कर सके !
और इन सपनों को पूरा करने के लिए बचपन से लेकर युवा तक  बच्चों को   अच्छी से अच्छी शिक्षा देंने की पूरी कोशिश की जाती हैं यहाँ तक की नामी प्राइवेट संस्थानो में पढ़ाने के लिए व उज्वल भविष्य के लिए अपनी जमीन का टुकड़ा बेच देते हैं या कर्ज पर पैसे ले लेते हैं!

अगर मध्यम वर्ग से छात्र  होते हैं तो लाखों का  लोन भी ले लिया जाता  हैं ताकि शिक्षा पूरी होंने पर आसानी से चूका दिया जायेगा ! पर ऐसा नही होता हैं  - पोस्ट ग्रेजुएट, बीएड बीटेक व उच्च शिक्षा प्राप्त करके भी छात्रो को मनमाफिक  नौकरी नहीं  मिल पाई है जहां  नौकरिया  मिली भी वहां सैलरी 12 - 15 हजार रूपए से अधिक नहीं होती है  ! अब उनके परिवार के लिए अकेले लोन ,कर्ज  चुकाना ओर भी  मुश्किल हो जाता हैं।

ऐसा ही हाल - मीडिया के क्षेत्र ( पत्रकारिता संस्थाओं) का है जो छात्रों को मीडिया कि चमक - धमक दिखा कर  अपने  चैनल के निजी
संस्थानो में पढ़ने को प्रोत्साहित करते हैं तथा  टीवी का पर प्रसिद्ध चेहरा बनने एवम् इसी संस्थान के ही टेलीविजन चैनल में  नौकरी देने का वादा करते हैं इसी आस में परिवार लाखों , करोड़ो  रुपए खर्च कर देता है अंत में यदि  नौकरी भी दी जाती है तो  उतनी सैलरी भी नही मिलती कि खर्च किए गए । पैसो  का एक तिहाई भी मिल जाये ! लेकिन फिर भी    कुछ महीने बाद बिना कारण बतायें  नौकरी से निकाल  दिया जाता  है!
आज पत्रकारिता को बाजारीकरण का क्षेत्र बना कर रख दिया गया है यहां युवाओं के मन में गिलेमर  , प्रसिद्धि , पैसा के अलावा कुछ नही दिखाया जाता , नही बताया जाता कि कैसे  हम एक अच्छे  पत्रकार बन सकते है,  किस प्रकार पत्रकार अपने दायित्वों का पालन करते हुए , देश सेवा कि जा सकती है कैसे इस समय में सत्य के मार्ग पर चलते हुए पत्रकारिता को जिन्दा रखा जा सकता है !

यह हाल केवल शिक्षा , इंजीनियरिंग, पत्रकारिता का ही नहीं प्रबंधन , चिकित्सा , वकालत जनसंचार समेत तमाम क्षेत्रों का है , जहां लाखों रुपए खर्च करके डिग्री हासिल करने वाले छात्र - छात्राएं बेरोजगार घूम रहें
देश में बेरोजगारी की भयावह समस्या तो है ही एक अन्य समस्या यह हैं कि जिन्हें योग्यता के आधार पर    नौकरी दी जाती है , उनकी सैलरी ऐसी होती हैं कि नौकरी पाकर भी दयनीय स्थिति में ही होते हैं आज के समय में एक ऑटोचालक , सब्जीवाला ,अखबारवाला दूधवाला , ड्राइवर और यहां तक कि आज चाय - पान   की दुकान वाला भी महीने के 8 से 15 हजार कमा लेता हैं ऐसे में खुद सोचा जा सकता है कि महंगे कोर्स करने के बाद ऐसी   नौकरी में हमारे युवा कैसा महसूस करते होगें !
सरकार को  कम लोगों   से अधिक समय तक ,कम वेतन में  काम कराने  कि इस नीति को बदलना होगा , देखा जाता है कि सभी कम्पनियों के मालिक तय वेतन  से कम वेतन देते है  यह  एक तरह का काला धन है जो मजदरों का शोषण कर के कमाया गया है इस समस्या का सामना औरतो  को अधिक करना पड़ता है क्योंकि आज भी औरत का श्रम उनके लिए सस्ता हैं इस कारण  वेतन आयोग को पूरीतरह लागू किया जाना चाहिए ! घण्टे के अनुसार उन्हें उनकी मेहनत का पूरा वेतन मिलना चाहिऐ ! ताकि किसी भी मजदूर का शोषण ना हो पाए !  साथ ही साथ बेरोजगारी की आधी समस्या खत्म हो जायेगी! अगर कोई कंपनी मालिक तय वेतन को मानने से इंकार करता है तो उसके ख़िलाफ  कड़े कदम उठाने चाहिए ।

प्रिया गोस्वामी , नई दिल्ली
पत्रकारिता कि छात्र

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