क्या औरत ही औरत की दुश्मन होती है?

क्या औरत  ही  औरत की दुश्मन होती है ? 

अक्सर लोग बोलते हैं कि  औरत  ही औरत  की दुश्मन होती है, तथा वो ही औरतों  का सबसे ज्यादा शोषण करती है 
एक नजर में ये ठीक हो सकता है जैसे हम किसी समस्या को दूर से देखते हुए फैसला कर लेते हैं कि गलती फलाने की होगी!
क्योंकि बहु का शोषण तो सबसे  ज़्यादा सास ही करती है वहीं उससे जरूरत से ज़्यादा काम कराती है, तथा मायके से दहेज लाने का जोर भी वहीं  डालती है। उसे ही तो, बहु  से गहने चाहिए होते हैं। कुछ मामलों में तो सास और ननद बहु को जला भी देती हैं। ज़्यादातर मामलों में तो घर की महिला की लड़ाई एक औरत से ही होती है। घरेलू कामों की वजह से अक्सर महिलाएं एक दूसरे  की दुश्मन बन जाती है लेकिन ये भी घरों में बहु ,बेटियों के  साथ भेदभाव के कारण होता है किसी को गोरा होने पर, अच्छे घर से सम्बंध रखने व  बेटा पैदा होने पर ज्यादा तबज्जो  दी जाती है। सब के साथ समान व्यवहार न करने पर इस तरह का व्यवहार सामान्य है। पुरुषों के भी अपने काम की जगहों पर अपने मित्रों से मनमुटाव हो जाते है। फर्क इतना है कि घर के मनमुटाव सब को दिखते हैं लेकिन पुरुषों के व्यवहार से किसी को भी ज़्यादा लेना देना नहीं होता। इसलिए समाज को औरतें ही एक दूसरे की दुश्मन नजर आती है। 

दूसरी तरह हमारी फिल्में धारावाहिकों ने महिला को  दो श्रेणी में बांटा हुआ है एक अच्छी औरत  दूसरी बुरी औरत, अच्छी औरत वो है जो संस्कारी व परंपरागत रीतिरिवाजों को मानने वाली होती है बुरी औरत वो जो जीन्स क्रॉप टॉप व  छोटे बाल रखती है, हद से ज्यादा मेकअप करती है हाथ में सिगरेट या शराब का प्याला रखती है दोस्तों के साथ जब चाहे बाहर आती - जाती है।अपनी चलाती है अपने बारे सोचती हैं भाई से अपने हक के लिए भी लड़ना जानती है उसके आने पर एक भयानक चालवाज  धुन सुनाई जाती है। ऐसा दिखाया जाता है मानों  उसे चाल चलने के अलावा कुछ नहीं आता है।  
अधिकतर धारावाहिकों, फिल्मों में  औरतों को ही  एक दूसरे प्रति चाल चलते हुए दिखाया जाता है। वहीं नाम मात्र पुरुषों को इन चालों के लिए चुना जाता है जिसमें उसकी चालों  को अंतिम रूप देने का काम एक औरत ही करती है । 

अब पितृसत्ता को समझते हैं  पितृसत्ता  कोई भी काम डायरेक्ट नहीं कराती है पुरुषों की दुनिया को चलाने का काम सदैव औरतों ने ही किया है  चाहे पूर्ण उत्पादन का काम हो या धर्म , जाति को संचालित करने का काम हो,इनके बिना पितृसत्ता चल ही नहीं सकती है। डॉ भीम राव अम्बेडकर ने भी कहा था कि जाति को  खत्म करने का एक मात्र रास्ता है प्रेम विवाह (अंतरजातीय विवाह)  क्योंकि जाति  तभी तक सुरक्षित है जब तक औरतें धर्म - जाति की वाहक है। इनके ही बल पर पुरूष समाज  में श्रेष्ठ बना बैठा है। 

इसको एक उदाहरण से समझ सकते हैं 
लड़कियों को जाति  के अंदर ही विवाह करना चाहिए , लड़कियों को कम पढ़ना चाहिए , घर से दूर वाले स्कूलों में लड़कियों को नहीं भेजना चाहिए , लड़कियों को  ज्यादा पढ़ना लिखना नहीं चाहिए , सूट -सलवार ही लड़कियों को पहनने चाहिए , अपनी छाती को चुन्नी से ढक कर चलना चाहिए , रास्ते में जाते समय नजरे नीचे रहनी चाहिए ।  ऊंची आवाज में तथा  बड़ो को उल्टा जवाब नहीं देना चाहिए । कहीं भी जाओ भाई छोटा हो या बड़ा साथ में लेकर जाना चाहिए, देर रात तक अच्छे घर की लड़कियों को घर से बहार नहीं रहना चाहिए है। लड़कियों का काम है घर का चूल्हा - चौका करना। पति ही परमेश्वर,  लड़कियों को  सहनशील होना चाहिए, परिवारों की खुशी में ही उसकी खुशी होनी चाहिए, लड़की की सुसराल से उसकी अर्थी ही आती, औरत की सबसे बड़ी इज्जत उसकी योनी है अगर ये अपवित्र हो गई तो वह  कहीं  मुहं दिखाने लायक नहीं होती है। इत्यादि बातें औरतों को बचपन से ही सीखा दी जाती है वो भी एक औरत के द्वारा जो उनकी मां , बुआ  चाची , दादी , नानी के रूप में होती है। लेकिन  कभी सोचा है कि इन औरतों को ये सब किसने सिखाया ? ये सब पुरुषों ने ही औरतों को सिखाया जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी औरतों को विरासत में मिली है। सोचने वाली बात है  भला ऐसी  शिक्षा का औरतों को  क्या लाभ ? जिन औरतों ने इन  परम्पराओं पर सवाल उठाए  या  इस जाल से निकलने की कोशिश की उन्हें डायन साबित कर  दिया या झूठी इज्जत के नाम पर मार दिया गया। ये हम खाप पंचायतों का प्रेमी जोड़ों के खिलाफ अ संविधानिक फैसलों में देख सकते हैं कि कैसे वो धर्म, जाति व गोत्र को बचाने के खातिर प्रेमी जोड़ों की हत्या करा देते हैं  इसमें प्रशासन भी इनका ही साथ देता है। क्योंकि वह खुद ऐसे ही समाज मे पले -बढ़े है। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर, सामाजिक न्याय मंत्री गीता भुक्कल जैसे अनेक नेता भी अंतरजातीय व प्रेम विवाह पर खाप पंचायतों का समर्थन करते हैं।   कैथल ले करोड़ा गांव के   मनोज, बबली,  दिल्ली के अंकित सक्सेना जिन्हें प्रेम करने की सजा मिली। मनोज , बबली के  घर का हुक्का पानी बंद करा दिया गया।  गांव की इज्जत की भरपाई के लिए  11 लाख पंचायत को देने का हुक्म भी सुनाया, अगर गांव का कोई व्यक्ति इस घर सम्बंध रखता है तो हर्जाने के तौर पर उसे 4 हजार रुपए देने पड़ेंगे हैं। कभी- कभी तो पंचायत प्रेमी जोड़ो को पकड़ने के लिए इनाम की घोषणा भी करती है। अखबारों व टीवी पर लड़कियों को जीन्स न पहनने व मोबाइल न दिलाने जैसे फरमान तो आपने सुने ही हुगें न ? ये सभी फैसले पुरुषों के द्वारा ही लिए जाते हैं इनमें औरतों की कोई भूमिका नहीं होती है वो केवल इनके हुक्म का पालन करती है और दुनिया की नजर में औरत ही  औरत की दुश्मन बन जाती है। 
मेरा सवाल है कि औरत किसके लिए एक औरत की दुश्मन बनती है  गहने, संम्पति , बेटा, तथा भौतिक वस्तुएं  जिनपर उसका कोई हक नहीं  होता। उसका प्रयोग केवल पुरूष ही करता आया है। फिल्म सीक्रेट सुपरस्टार में इंशिया की मां अपने मायके से मिला हार बेचकर गिटार लाती है तो उसका पति उसे मारते हुए कहता है कि तेरी इतनी हिम्मत की मेरे से बिना पूछे हार बेच दिया। 

औरतें ही अपनी कोख में बच्चियों को मार देती है । 
ये आपको लगता होगा , लेकिन उन्हें मरवाया जाता है या मारती है इसमें अंतर किए  बिना आप फैसला कर लेते हैं । की औरत ही  औरत की दुश्मन होती है। 
जब बेटा पैदा करने पर घर व समाज में  मान -सम्मान  मिलता है  वहीं बेटी पैदा करने पर मिले तो 
कौन मां अपने अंश को दुनिया में आने से रोकेगी? 

                                      
साधारण तरीके से इस तरह  समझा जा सकता
बेटी बोलती है  मां मुझे ये किताब या अन्य वस्तु लेने  दुकान पर जाना है  इसपर मां बोलती है कि शाम  को कहां बाहर जाएगी, इस समय भीड़ भी होगी  दुकान पर , मंहगा भी देगा तुझे 
भाई जाएगा ला देगा जो तुझे चाहिए ।
लड़की को अगर ये बोला जाता कि तू लड़की है शाम के समय जाना ठीक नहीं तो वह शायद इसका विरोध करके जरूर जाती। लेकिन हम से इस तरह की अपनी बात मनवा ली जाती है जैसे सांप ही मर जाए और लाठी भी न टूटे । अब रोका भी उसकी मां  ने ,आप बोल सकते औरत ही औरत की दुश्मन होती है दूसरी तरफ अगर मां ऐसा नहीं करती तो पिता और भाई मां पर ही बरसते कि क्या सीखाया है तूने  अपनी बेटी को । जिन औरतों के सामने  पुरुषों को ईश्वर का रूप बताया गया हो तथा उसके चरणों में ही सुख की प्राप्ति होती हो। ऐसे में औरतें उनकी  बातों को वो बिना सोचे समझे मान लेती है। जैसे राजा को देवीय रूप बताया जाता था  अर्थात देवताओं के द्वारा भेजा गया दूत । ताकि प्रजा उसके किसी फैसले का विरोध न कर पाए । उसी तरह औरतें भी पुरुषों की बातें बिना सोचे समझे मानती आ रही है। क्योंकि उन्हें भी पति परमेश्वर, स्वामी जैसे नामों से सम्बोधित किया जाता है। 

इतिहास में अगर महिला आंदोलनों को देखे तो  औरतों के साथ के बिना ये आंदोलन पूरे नहीं होते हैं।  स्त्री शिक्षा, मताधिकार का हक, समान वेतन , बाल विवाह ,विधवा विवाह , काम के घण्टे, शांति आंदोलन जिस में दुनिया की महिलाओं ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया और युध्द न करने की अपील की । 
भारत में स्वतंत्रता आंदोलनों में महिलाओं ने दोहरी भूमिका निभाई तथा  घरेलू काम काजों को पूरा कर आंदोलनों में आ जाती थी गानों , भजनों के  माध्यमों से लोगों को जागरूक किया। ये औरतें जरूरत पड़ने पर स्त्री धन भी दे दिया करती थी जबकि  नमक सत्याग्रह आंदोलन में 17  हजार से ज्यादा औरतें थी, झाँसी की रानी रेजिमेंट आज़ाद हिंद फौज की एक महिला रेजिमेंट थी जिसमें 500 महिलाएं थी।  हम कैसे बोल सकते हैं कि औरत ही औरत की दुश्मन है ?  बिना महिलाओं के सहयोग से कोई भी युद्ध ,आंदोलन सफल नहीं हो सका है।  किसी न किसी तरीके से  महिलाओं ने अपना होना इतिहास में दर्ज कराया है। पर  कुछ नामी महिलाओं को छोड़ कर आज महिलाएं  इतिहास में  आदर्शय है। ये एक पुरूष समाज की सोची - समझी चाल है ताकि वो अपने आप को पुरुष से कमतर समझती रहे और पुरुषों के बनाए षड्यंत्र में फंसी रहे । 


प्रिया गोस्वामी 
  एम.ए स्त्री अध्ययन 
अतंर्राष्ट्रीय महात्मा गांधी हिंदी विश्वविद्यालय  वर्धा 



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