अपनी मां के स्तनों को देख कर पुरुषों में कामवासना क्यों जाग्रत नहीं होती है ?


अपनी मां के स्तनों को देख कर पुरुषों  में कामवासना क्यों 
जाग्रत  नहीं होती है ? 
मैंने तो शादी की रस्म में भी देखा है  कि बारात के जाते समय दुल्हा अपने माँ के स्तनों से दूध पीने की रस्म करता है। मेरी दादी तो  70 की उम्र में पापा के सामने नहा भी लिया करती थी। कभी - कभी पापा खुद उन्हें अच्छे से नेहा दिया करते थे। ऐसा ही मेरी ताई जी के साथ वो बिना ब्रा के रहती है  कोई उन्हें कुछ नहीं बोलता । 
शायद बढ़ती उम्र में औरतों की यौनिकता के कम होने के कारण उन्हें आजादी मिल जाती है। बहु से सास बनते  - बनते  औरतों का पर्दा हटने के साथ ज़्यादातर पाबंदियां खत्म हो  जाती है   साथ ही उनकी युवा अवस्था  भी समाप्त हो जाती है। 
जबकि पुरुष समाज  सबसे ज्यादा  ध्यान महिला के स्तनों को ढकने  की ओर देता है। जैसे स्तन नहीं हो गए । कोई बम हो गए । जो पुरूष के देखने भर से वो लालायित हो उठेगा।मानो उसके शरीर के बाकी हिस्सों की तरह ये खास है ये खास नहीं है इसे खास बनाया गया है उनके स्तनों को उनकी इज्जत , शर्म में परिवर्तित कर दिया गया है। ब्रा की स्टेप दिखने,  सूट  व ब्लाउज का गला गहरा  होने पर भर से  उस महिला को बदचलन , आवारा घोषित कर दिया जाता है जबकि  औरतों के  स्तन  मातृत्व का प्रतीक है।  जिसे वह अपने शिशु को स्तनपान  कराती है  इससे साफ है कि गन्दगी औरतों के स्तनों में नहीं लोगों के दिमाग में भरी  हुई है  युवा स्त्री के स्तनों को गलत नजरों से देखता है जबकि  वृद्ध  औरतों  के स्तनों की तरह वो आकर्षित नहीं होता।  क्योंकि औरत केवल युवा आयु तक ही आकर्षित रह सकती है ये कीड़ा  लोगों में भरा हुआ है। इसलिए उसे अपनी मां के स्तनों  को देखने से कामवासना जाग्रति नहीं होती है। 
ये समाज के ध्दारा गढ़ी हुई सोच है कि  युवा स्त्री के स्तनों से  पुरूष आकर्षित होता है जबकि वो वृद्ध स्त्री के स्तनों  को महत्व नहीं देता । अगर युवा स्त्री के स्तनों को  वृद्ध स्त्री के स्तनों की तरह ही आम समझा जाए तो ये  स्त्री के बाकी अंगों की तरह ही आम है। 
दूसरी तरफ महिला स्तनों को विज्ञापनों, फिल्मों  में पुरुषों को आकर्षित करने के लिए उकसाया जाता है। उन्हें डीप गले के कपड़ों को पहना कर कैमरे का उनके स्तनों पर फोकस  कराया जाता है  मानो वो  प्राणी मात्र न होकर केवल वस्तु मात्र है जो पुरुषों को खुश करने  के काम आती है। फिल्मों में एक सीन बहुत दिखाया जाता है   जिसमें औरत का साड़ी का पलू गिर जाता है पुरूष उसके स्तनों को देखता रहता है  और वो पूरी तरह उस औरत के प्यार में पागल हो जाता है। जैसे उसके स्तन ही सफलता की कुंजी है। 

खास बनने  से पाबंदियां बढ़ती है
आम बनने से  आज़ादी मिलती है
चाहे वो स्त्री अंग हो या इंसान 

प्रिया गोस्वामी

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