पैडमेन मूबी रिव्यू

क्या तुम्हें भी चाहिए पैडमेन जैसा पति ?
हर किसी को चाहिए।   पैडमेन जैसा  पति जो उसे समझे , प्यार करेँ  ,उस की   हर जरूरत को  अपनी जरूरत समझे , हर  चीज को समस्या ना समझ कर , औरत की शक्ति बने ,  बोलने से पहले उसकी जरूरत को समझे उसे पूरा करे , ना की  उसे अपनी औरत की जरुरते बोझिल लगे ।
अपनी पत्नी को दासी ना समझ कर जीवन साथी समझे , बल्कि उस का कर्तव्य है कि वो ये समझे की  हर काम छोटा बड़ा नही होता औरत जो घर का काम करती है ऑफिस जाती है  उस का मोल हम चाह कर भी नही उतार सकते , जब की लक्ष्मीकान्त अपनी पत्नी के हर काम में हाथ बटाता है  उस के साथ सब्जी काटता है , कपड़े धोता है  ना केवल घर आ कर पत्नी पर हक जमाते हुए खाना मांगता है  यहां तक की पत्नी से जुडी हर छोटी मोटी जानकारी रखता है जब की पतियों को उनके स्वास्थ्य से कोई लेना देना नही होता ,  जब उसे पता चलता है कि मासिक धर्म में 5 दिन उसकी पत्नी घर से बाहर रहेगी , वो उसका विरोध करता है ऐसी रीती रिवाज मानने को मना करता है जब की वह मात्र 8 वी कक्षा पास है  जब पत्नी को गन्दा  कपड़ा लगाते देखता है तो उसे ऐसा करने को मना करता है और बाजार से    पैड  ले आता है पत्नी महँगा होने और घर का खर्च ना बढ़ जाये , उसे देखते हुए  उसे वापस कर देती है , जब अचानक उसे गन्दा कपड़ा लगाने से होंने वाली बीमारी के बारे में पता चलता है तो इस विषय में गम्भीर हो जाता है तब वह पैड बनाने की सोचता है इस बीच उसे घर , समाज के तानो के साथ  घर भी छोड़ना पड़ता है पता है क्यों,  क्योंकि उसने महिलाओं के दर्द को समझा,यही  पाप  उस ने कर दिया , पुरुष तो सोच ही नही सकता ना इस गन्दी  बीमारी के बारे में । जहाँ महिलाएं अपने दर्द को ना समझ कर रूढ़िवादी रीतिरिवाजों का साथ देती , ये बिना  समझे कि क्या सही है ओर क्या गलत | वही वो भगवान को  खुश करने के लिए अच्छा खासा चढ़ावा  देती है पर अपने स्वास्थ के बारे में नही सोचती
यहां तो उसे पुरे परिवार के  लिए भगवान का आशिर्वाद मिलेगा , कहां वो एक पैड का पैक खरीदने में पैसे बर्बाद करेगी , हमारे समाज में जब महिला अपने बारे में सोचने लगती है तो स्वार्थी हो जाती है यह उसके लिए गुनाह है शुरू से ही वो अपने परिवार की शर्तों पर जिंदगी जीती है फिर ससुराल में आ कर भी उसे आर्डर मिल जाते है कि उसे क्या करना चाहिए और क्या  नहीँ, अपनी इच्छाओ के ठन्डे बस्ते में डाल देना बेहतर समझती है क्योंकि उसका तो केवल शरीर अपना होता है चाबी तो परिवार वाले भरते है

जो पैड़मेन औरत और पुरुष में भेद ना करे उसे अपनी दासी ना समझ कर ,जीवन संगनी समझे ऐसा पति किसे नहीं चाहिए , बहुत कम ही पुरुष होते जो महिलाओं के लिये आवाज उठाते है और बराबरी का भाव रखते है हर धारणा को बदलने में समय और संघर्ष लगता है क्योंकि मानसिकता आसानी से नही बदली जा सकती , उस के लिए संघर्ष जरूरी है
जहां एक पुरुष को कोई मतलब नहीं की कब क्या हो गया , उसे केवल रोजाना की ही तरह परोसा हुआ खाना चाहिए । उस समाज में एक पैडमेंन की जरूरत है जो दूसरों के लिए मिसाल बने

तब शायद महिला सशक्तिकरण  की आवश्यकता ही नही पड़ेगी

जब की आज 50 करोड़ महिलाओं में से केवल 15 % ही पैड़ यूज़ करती है  अपने बारे में ना सोचकर परिवार के लिए सोचती है

प्यार वो जो आप को रूढ़िवादी रीतिरिवाजों के आगे झुकना ना सिखाकर , आत्मसम्मान के लिए लड़ना सिखाए  , आप की ख़ुशी के लिए अपनों से भी लड़ जाए क्योंकि आप सही हो आज नही तो कल वो गलत साबित तो होते है
समाज में बदलाव हमें ही लाना होगा , नई सोच  पैदा करनी है  ओर कब तक हम कितनी औरतों की इच्छाओ , सपनों को मरते हुए देख सकते है
झुकने से अच्छा है लड़ना सिखों क्योंकि हम अपने बारे में नही सोचेंगे तो कौन सोचेंगा।

प्रिया गोस्वामी

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