तीन तलाक पर मुस्लिम महिलाओं की जीत

तीन तलाक पर मुस्लिम महिलाओं की जीत

तीन तलाक एक पुरानी प्रथा है जिस में सिर्फ कुछ शब्दों को बोल कर  महिलाओ के आत्मासम्मान  को चीर चीर कर दिया जाता है उसे केवल उपभोग की वस्तु समझ कर जब चाहे जैसे चाहे घर से बहार निकाल दिया जाता है इस डर के कारण ना जाने कितनी महिलाऐ एक ख़ौफ  में जी रही थी, कि अगर वो इस प्रथा का विरोध करती है तो कौन है? उन के साथ कहा जाएे जहाँ उन्हें इंसाफ मिले !
पर कहते है ना बुराई की उम्र ज्यादा नही होती , एक नई किरण उस अंधकार को मिटा देती है
ये किरण दिखी शाहबानो ,में उसने  ने अपने साथ हुए अन्याय के खिलाफ  आवाज उठाई ।उसके बाद ऐसे ही कई मामले सामने आये , होते तो ये पहले भी थे ,पर महिलाओं में शिक्षा की कमी, समाज का  डर  होने के कारण वो इसका विरोध नही कर पा रही थी , लेकिन जब ये सब एक शिक्षित महिलाओ के साथ होंने लगा तो ।
उन्होंने इस का विरोध किया ,बल्कि  इस को गैरकानूनी घोषित करने व्  महिलाओं के हित में कानून बनाने की गुहार सरकार से लगाई !
ये सफर लम्बा चला, पर इस में नया मोड़ 22 अगस्त 2017 को आया ! जिस में  सुर्पीमकोर्ट ने तीन तलाक को असंवैधानिक घोषित कर दिया!  लेकिन इस से पहले जहाँ साल में 300 तीन तलाक हुए , वही सुप्रीमकोट के फैसले के बाद 100 तीन तालक हुए ।

अब जरूरत थी ,कारगार कानून की जो इस अपराध पर लगाम लगा सके । ये ऐतिहासिक फैसला 28 दिसम्बर 2017 को आया , संसद में तीन तलाक बिल  सब की मंजूरी से पास हो गया ,इस फैसल को आने से पहले धर्म के नाम पर राजनीति करने  जैसी कई अड़चने सामने आई !

तीन तलाक बिल
इस बिल में तीन साल के जेल का प्रावधान है
बिल के अनुसार अगर कोई तलाक देता है तो उसे थाने से नही कोर्ट से जमानत नहीं मिलेंगी।
भारत से पहले इस्लामिकदेश बांग्लादेश , मिस्र मोरक्को इंडोनेशिया, मलेशिया और पाकिस्तान में भी तीन तलाक को रेगुलेट किया गया , कुल मिलकर 22 देशो में ये प्रतिबन्ध है।
ये समझना जरूरी है कि कानून लोगों के भले के लिए बनता है ये कानून तलाक के खिलाफ नही है ये केवल तीन तलाक के खिलाफ  है इस फैसले को
वोट के चश्मे से नही देखना चाहिए। बल्कि इंसानियत के चश्मे से देखने की जरूरत है।

इस्लाम खतरे में नही
जब तीन तलाक पर रोक लगाने की बात आती है तो धर्म का डर दिखा कर , उसे सही ठहराया
जाता है पर मेरा मानना है कि ये मुद्दा धर्म से नही, बल्कि इंसानियत से जुड़ा है उतना ही महिलाओं की गरिमा , व्     आत्मसम्मान से भी  जुड़ा  है जब कि धर्म एक वर्ग ,समुदाय का विकास करने के लिए होता है धर्म के ध्दारा कभी किसी का शोषण नही हो सकता ,बस कुछ धर्म गुरु ,धर्म का डर दिखा कर अपनी बात को मनवा लेते है। इस बिल को मजहब के तराजू पर ना तोला जाए ,बल्कि ये 9 करोड़ मुस्लिम महिलाओं कि इज्जत से जुड़ा है।

परवरिश की चिंता

बिल पास होने के बाद ये सावल उठता है कि पिता के जेल जाने के बाद बच्चों की परवरिश कौन करेगा ? कमाएगा कौन ?  अगर भत्ता देंने का प्रावधान कर भी दिया, तो  कहाँ से लाएगा ?
मेरा मानना ये है कि एक तरफ आप महिलाओं के हित में कानून बनाते हो ,दूसरी तरफ आप उसे पति पर निर्भर रहने को मजबूर कर रहे हो,
अगर पति को भत्ता देने का प्रावधान करते है तो ये नही सोचना चाहिए कि वो भत्ता कैसे देगा। बल्कि उसके लिए ये एक सजा , डर ओर एक सबक बनना चाहिए, कि अगर उसने कोई ओछी हरकत की तो उसे जेल के साथ -साथ ये आर्थिक बोझ भी उठाना होगा !

शिक्षा की कमी

ये कानून तमाम मुश्किलो के बाद पास हुआ । पर ये जब तक कारगर साबित नही होगा जब तक मुस्लिम महिलाओं में शिक्षा की कमी है
जब तक वह नही समझती कि उसके लिए समाज, इज्जत , धर्म के सिवाय भी उनका  अस्तित्व है कि वो अपने अपमान का विरोध कर न्याय पा सकती है अपने हक के लिए पुरे समाज से लड़ सकती है क्योंकि इतिहास से ही महिलाओं को समाज में इज्जत के  नाम , परिवार के नाम खराब होने के डर दिखा कर चुप करा दिया जाता है , पर उन्हें ये समझना होगा कि अपने लिए लड़ना गलत नही है ये हमारा    संवैधानिक अधिकार  है चाहे समाज साथ दे या ना दे !

प्रिया गोस्वामी





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