महिलाओं में असुरक्षा कि भावना के कारण

महिलाओं में असुरक्षा का कारण

महिला अबला नही बल्कि पूरे संसार की रचियता है जिस के ध्दारा पूरा संसार चलता है लेकिन इतिहास से ही पितृसत्तातमक समाज ने महिलाओ के मन में कमजोर , नाजुक होने की भावना भी उत्तपन्न  कर दी हैं इसलिये उन्हें हर -पल पुरुष समाज के छाया छत्र में रहने के लिए मजबूर कर दिया जाता है शादी से पहले पिता , भाई की छत्र -छाया में रखा जाता है एवम् शादी के बाद पति के पास उसकी सुरक्षा का दायित्व आ जाता है उसके यक्तिगत निर्णय से लेकर , कब क्या करना ,  कहाँ  जाना है कहाँ नही ये सभी निर्णय लड़के के परिवार वाले लेते है उसकी अपनी जिंदगी ही उसकी नही रह जाती! वो अपने आप को बेहसहारा समझने लगती है कि पुरुष के बिना उसका अस्तित्व नही है किन्हीं परिस्थितियों में  जब वो अपने हक के लिए खड़ी होती है तो हमारा समाज उसे वर्ग जाति , धर्म और इज्जत के  नाम पर चुप करा देता है तब महिलाओं में  असुरक्षा की भावना पैदा होती है कि जब उसके अपने ही उसके साथ नही है तो कानून से कैसी आश लगा सकती है क्योंकि समाज ने हमेशा से ही महिलाओं के चरित्र पर ही ऊगली उठाई है बचपन से ही उनके खिलौने को लिंग के आधार पर बाट दिए जाते है उन्हें हर - पल कमजोर होने का एहसास कराया जाता रहा है अगर बचपन से महिलाओं को पुरुषो के  बराबर समझा जाए !  जितनी आजादी पुरुषो को मिलती है यदि
उतनी ही आजादी महिलाओं को  मिले |उन्हें शिक्षित कराया जाए,  तभी वो अपने अधिकारो के प्रति जागरूक हो सकती है ! वो दिन दूर नही ,जब पुरुष समाज कभी महिलाओं के साथ बर्बरता करने कि सोच नही सकता !
सबसे पहले महिलाओं को अपना अस्तित्व पहचानना होगा कि पुरुष के बिना भी उनकी पहचान है समाज में!

प्रिया गोस्वामी, ( दिल्ली)

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