तीन तलाक जागरूकता की कमी

तीन तलाक एक धर्म के मुद्दे से ज्यादा एक महिला की आबरू ,इज्जत ,सम्मान का मामला है धर्म के नाम पर 1400 सालों से महिलाओं के साथ हो रहे शोषण के जिम्मेदार खुद धर्म गुरु , और वे महिलाये है जो समाज में इज्जत के नाम पर अब तक चुप रही है पर शायरा बानो, शाहबानो के जैसी औरतो कि वर्षो की  लड़ाई ने सभी औरतो को इंसाफ दिलाया बल्कि उन के लिए प्रेरणा बन के उभरी है
तीन तलाक सिर्फ बोलने से तलाक नही होता ,इसके लिए कई प्रकार के नियम ,कानूनों से गुजरना होता , जो कि बहुत लम्बी प्रकिया है जिसमें दोनों पक्षो को सुना जाता है जरूरी है तो सिर्फ जागरूकता की , क्यों की अब युवाओ में अपने धर्म को जानने की कोई खास दिलचस्बी नही रह गयी ,जो है भी तो अपने फायदे के बारे में जानने की! मतलब साफ है आधा अधूरा ज्ञान खतरनाक साबित होता है जो महिलाओ को भुगतना पड़ता है!

ताकि वह महिलाओ पर अपना ख़ौफ व रुतवा जता सके !यहाँ पितृ सत्ता के लक्षण साफ दिखते है जो उन में बालपन में हि पैदा कर दिए जाते है!  बड़े होने पर उनके नक्शे कदम पर चलते और अपने घर की औरतो पर अत्याचार करते है और हमारे युवा भली - भाति जानते है की इस कार्य में उनका समाज हर कदम पर उनका ही साथ देगा! इसलिए उन्हें किसी प्रकार का डर नही रहता , कोई भी औरत उन पर  उंगली नही उठा सकती ,! इस  कारण सोशल मीडिया का सहारा ले कर तीन तलाक दे देते हैं शादी जैसे पवित्र रिश्ते का मजाक बना के रख देते है ! पता है क्यों क्योंकि उन्हें धर्म के आगे सविंधान कमजोर नजर आता है जो धर्म गुरु बनने का दावा करते हैउन्हें  खुद धर्म की पूरी  जानकारी नही होती है इसलिए सभी मौलवीओ की राय धर्म के मामले में अलग -अलग  होती है इसलिए आसानी से अपने शब्दों में धर्म की व्याख्या अपने हित में कर ! धर्म के ठेकेदार बन जाते है दूसरी तरफ हमारे युवाओ के लिए यह मात्र खेल बन गया है ! जो कोई भी कही भी बोल कर रिश्ता खत्म कर सकता है जो कि एक अपराध है सुप्रीम कोट का फैसला सराहनीय है पर तीन तलाक पर कानून बनाने के साथ - साथ जरूरी है की युवाओ को अपने धर्म के बारे में जानकरी हो साथ ही शादी जैसे बंधन में बधंने से पहले मौलवी उन्हें शादी के सभी वचनो के साथ - साथ तीन तलाक के बारे में पूरी जानकारी दे और जो इनकी अवेहलना करेगा ! वो समाज के व्दार दंडित किया जायेगा!! तभी पुरषो के मन में  औरत के लिए इज्जत ,सम्मान स्नेह पैदा हो पायेगा !
सवाल है की इस कानून के बन जाने पर कितनी महिलाये सामने आईगी? , जो अपने हक का मतलब भी जानती , कानून से ज्यादा जरूरी है की मुस्मिल औरतो को शिक्षित किया जाये ,तभी इन कानून का मतलब होगा !

प्रिया गोस्वामी, नई दिल्ली

Comments

  1. बहुत अच्छे प्रिया और सही कहाँ, कानून का जब तक कोई फायेदा नहीं हैं, जब तक उसकी सही जानकारी व समझ न हो।

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