स्त्री के अस्तित्व की कहानी

कौन हूँ मैं ? क्या हूँ मैं ? कहां हूँ मैं ? जल्दी आऊ तो मुसीबत देर से आऊ तो भी मुसीबत ना आऊ तो सवाल हर -पल डर लगता है मुझसे मैं कहीं भी, कभी भी आ जाती हूँ मेरा ना आना भी डरा देता है आना भी दर्द देता है। मेरे आने से पहले ही तैयार रखना पड़ता है उन्हें खुद को आऊ तो बंदिशें उसपर मंदिर मत जाओ तुलसी को मत छुओ आचार को मत छुओ रसोई में मत जाओ हर जगह रोक दिया जाता है उसे क्या अस्तित्व है मेरा ? कहने को तो लोग मुझे गंदा होना, रजोधर्म, मासिक, पीरियड के नाम से पुकारते हैं। हां, होती है कमजोर, वह इन दिनों में फिर भी वह दुर्गा, काली का रूप धारण किए लगी रहती है घर के कामों में क्यों भगवान का वरदान अभिशाप बन गया स्त्री के लिए मेरे आने से टूटता है शरीर जैसे टूटती है शरीर की हड्डियां दर्द होता है पेट में, जैसे आधा हो गया हो शरीर होता है पीठ दर्द, जैसे वर्षों का हो दर्द शरीर से निकलती है रक्त की बूदें, जैसे बह रहा हो पानी कही मैं किसी को दिख ना जाऊ हर तरह से छिपाया जाता है मुझे अगर दिख भी जाऊ गल...